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जैनदर्शन
चाहे गरीब हो अथवा पैसेवाला हो, शहर में रहता हो या गाँव में रहता हो ।
___ वस्तुतः 'मन जीता उसने सब जीता' यह पूर्ण सत्य है । जो मनका विजेता है वही विश्वविजेता है ।
राग-द्वेष-मोह मनोवृत्ति के ही परिणाम हैं । इन तीन के ऊपर सम्पूर्ण संसार-चक्र घूमता है । इस त्रिदोष को दूर करने के लिये अध्यात्मशास्त्र के अतिरिक्त अन्य कोई वैद्यक ग्रन्थ नहीं है । परन्तु इस बात का स्वयं अनुभव होना कि 'एक प्रकार से मैं रोगी हूँ' बहुत कठिन है। जहाँ संसार के मोहतरंग मन पर टकराते हों, विषय-रति रूपी बिजली की चमक आँख को चकाचौंध करती हों तथा तृष्णा के प्रबल प्रपात में आत्मा अस्वस्थ दशा का अनुभव करता हो वहाँ अपना गुप्त 'रोग' समझना बहुत कठिन है । ऐसी स्थितिवाले अजीव एकदम अधःस्थिति पर होते हैं । इस स्थिति से ऊपर उठे हुए जीव, जो अपने आप को त्रिदोषाक्रान्त-त्रिदोष से उत्पन्न उग्र ताप
१. तत्त्ववेत्ता मिल्टन कहता है कि
“A mind can make heaven of hell and hell of heaven”. अर्थात् मन नरक को स्वर्ग और स्वर्ग को नरक बना सकता है । “We may be unhappy even while sitting on a mountain of gold and happy even without a pie in our pocket. I think that true happiness comes when we are neither rich nor poor, but just able to meet our requirements and reasonable comforts of life. The struggle of existence kills the joy of life. Easy life makes life dull and inactive. I think, true happiness consists in working for needs but never in becoming greedy." अर्थात् यह सम्भव है कि सोने के पर्वत पर बैठने पर भी हम सुखी न हो सकेंदुःखी हों, और हमारी जेब में एक पाई भी न हो उस समय भी हम सुखी हों । मैं समझता हूँ कि सच्चा सुख न तो धनी अवस्था में है और न गरीब अवस्था में, परन्तु हमारी आवश्यकताएँ और समुचित सुख-सुविधाएँ प्राप्त करने के लिये ठीकठीक समर्थ होने में है । जीवन के अस्तित्व की जद्दोजहद जीवन के आनन्द को नष्ट कर देती है और आरामतलब जीवन जीवन को आलसी-जड़-अकर्मण्य बना देता है । मैं समझता हूँ कि सच्चा सुख अपनी आवश्यकताओं के लिये कार्य करने मेंश्रम करने में समाया है, न कि लोभी होने में ।
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