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________________ प्रस्तावना विश्वसाहित्यमां, भारतीय साहित्य घणुं ज उच्चस्थान भरावे छे. भारतीय तत्त्ववेत्ताओए पोतानी विचारगंगानो स्रोत प्रत्येक भाषामां अने साहित्यनां विविध अंगोमां वहेवडाव्यो छे. भारतीय साहित्यकारोनी असाधारण मौलिकता एछे के तेमनी रचनानुं ध्येय लोकमनोरंजन न बनतां लोकहितमां छे, अने तेथीज तेमनी कृतिओ सर्व बंधनोथी मुक्ति अने मानवताना आदर्शनी सुगंधिथी महेकी उठे छे. भारतीय साहित्यने शणगारवामां जैन महर्षिओए आपेलो फाळो असाधारण महत्त्वनो छे. आत्महित अने लोकहितने खातर पोतानां जीवनने अर्पण करनारा आ पूज्योए शुद्ध मानवताने माटे ज सर्जन कर्यु छे. लोकमानसमां अनादिथी घर करी बेठेली आसुरी वासनाओना निर्मूल नाशनाज एक मात्र प्रयत्न का साहित्यने तेमणे पोतानुं साधन बनाव्युं छे. अलबत्त ! केटलाक अपवादोमां, श्रृंगार आदि रसोनां पण अपूर्व वर्णनो तेमने करवां पड्यां छे ते पण बालबुद्धि जीवने ते द्वारा धर्मामृतनां पान कराववा माटेज अने तेथी ज जैनाचार्योए नहि खेड्यो होय तेवो एक पण साहित्यप्रदेश आपणने मळनार नथी. अपूर्व प्रतिभा, महान् सर्जनशक्ति अने आदर्श त्यागी जीवनना त्रिवेणी संगमरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002970
Book TitleJain Kumar Sambhava Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmshekharsuri, Jayshekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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