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आभारदर्शन ।
सद्गत पू० आचार्य श्री क्षमाभद्रसूरिजीथी दैववशात् संपूर्ण नहि करी शकायलं आ जैनकुमारसंभव महाकाव्य सद्भाग्ये पूज्य आचार्यवर श्री विजयलब्धिसूरिजीना मुंबई चातुर्मास दरम्यान तेमना विद्वान शिष्यरत्नो मुनिप्रवर श्री विक्रमविजयजी तथा श्री भास्करविजयजीना सानंद सहकारने परिणामे संपूर्णता पामी शक्युं छे, ते बदल फंड तरफथी तेओश्रीनो अहीं आभार मानवानी अमे तक लइए छीए.
प्रस्तुत ग्रन्थना रचयिता विष प्रस्तावनामां विस्तृत रीते कहेवायुं छे एटले अहिं ते बाबतनुं पुनरुच्चारण जरूरनुं नथी; परंतु आ संस्थाना व्यवस्थापको प्राचीन अने अप्रकट रहेला जैन साहित्यादिना ग्रंथोनुं प्रकाशन करवा सदा उत्सुक छे-- अने रहेशे. तेओ आशा राखे छे के तेवा प्राचीन ग्रंथोना प्रकाशन माटे धुरंधर विद्वान जैनमुनिओ तथा श्रावक समुदाय तरफथी फंडना व्यवस्थापकोने योग्य मार्गदर्शन तथा सहाय मळशे. आ फंडद्वारा जैन साहित्यना छूपां अनेक रनो जाहेरमां मूकाय अने ते द्वारा जैन शासननी कीर्तिपताका दिगन्तमा फरकती रहे ए अमारी भावना छे.
आ प्रकाशनमा सहाय करनारा सर्वेनो फरी वार आभार मानी विरमीए छीए.
ली. हीराचंद कस्तुरचंद झवेरी मोतीचंद मगनभाई चोकशी
व्यवस्थापको श्री दे० ला० जै० पु० फंड.
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