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________________ (८) लब्धिसार ( क्षपणासारगर्भित ) - श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती-रचित करणानुयोग ग्रन्थ | पं० मनोहरलालजी शास्त्रीकृत संस्कृतछाया और हिन्दीभाषानुवाद सहित । अप्राप्य | ( ९ ) ज्ञानार्णव - श्रीशुभचन्द्राचार्यकृत महान योगशास्त्र । सुजानगढ़ निवासी पं० पन्नालालजी बाकलीवालकृत हिन्दी अनुवाद सहित । तृतीय सुंदर आवृत्ति । मूल्य - आठ रुपये । (१०) पंचास्तिकाय - श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचित अनुपम ग्रन्थराज । आ० अमृतचन्द्रसूरिकृत 'समयव्याख्या' एवं आचार्य जयसेनकृत 'तात्पर्यवृत्ति' - नामक संस्कृत टीकाओंसे अलंकृत और पांडे हेमराजजी - रचित बालावबोधिनी भाषा - टीका के आधारपर पं० मनोहरलालजी शास्त्रीकृत प्रचलित हिन्दी - अनुवादसहित । तृतीयावृत्ति । मूल्य- पाँच रुपये | (११) बृहद्रव्य संग्रह - - आचार्य नेमिचन्द्रसिद्धांतिदेवविरचित मूल गाथा, श्रीब्रह्मदेवविनिर्मित संस्कृतवृत्ति और पं० जवाहरलालशास्त्रिप्रणीत हिन्दी भाषानुवाद सहित | षद्रव्य - सप्ततत्त्वस्वरूपवर्णनात्मक उत्तम ग्रन्थ । तृतीयावृत्ति । मूल्य-पांच रुपये, पचास पैसे 1 (१२) द्रव्यानुयोगतर्कणा -- श्रीभोजसागरकृत, अप्राप्य है । (१३) न्यायावतार - महान् तार्किक श्री सिद्धसेनदिवाकरकृत मूल श्लोक, व श्रीसिद्धबिगणिकी संस्कृतटीकाका हिन्दी भाषानुवाद जैन दर्शनाचार्य पं० विजयमूर्ति एम० ए० नेक हैं । म्यायका सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है । मूल्य-पांच रुपये | (१४) प्रशमरतिप्रकरण --- आचार्य श्रीमदुमास्वातिविरचित मूल श्लोक, श्रीहरिभद्रसूरिकृत संस्कृतटीका और पं० राजकुमारजी साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित सरल अर्थ सहित । वैराग्यका बहुत सुन्दर ग्रन्थ है । मूल्य - छह रुपये | (१५) सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र (मोक्षशास्त्र ) --- श्रीमत् उमास्वातिकृत मूल सूत्र और स्वोपज्ञभाष्य तथा पं० खूबचन्दजी सिद्धान्तशास्त्रीकृत विस्तृत भाषाटीका । तत्त्वोंका हृदयग्राह्य गंभीर विश्लेषण | मूल्य - छह रुपये । (१६) स्याद्वाद मंजरी --- श्रीमल्लिषेणसूरिकृत मूल और श्रीजगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम० ए०, पी-एच० डी० कृत हिन्दी अनुवाद सहित । न्यायका अपूर्वं ग्रन्थ है । बड़ी खोजसे लिखे गये १३ परिशिष्ट हैं । ( पुनः छप रहा है ) (१७) सप्तभंगीतरंगिणी ---श्रीविमलदासकृत मूल और स्व० पंडित ठाकुरप्रसादजी शर्मा याकरणाचार्यकृत भाषाटीका । नव्यन्यायका महत्वपूर्ण ग्रन्थ । अप्राप्य । (१८) इष्टोपदेश ---श्री पूज्यपाद - देवनन्दिआचार्यकृत मूल श्लोक, पंडितप्रवर आशाधरकृत संस्कृत टीका, पं० धन्यकुमारजी जैनदर्शनाचार्य एम० ए० कृत हिन्दीटीका, स्व० बैरिस्टर चम्पतराय जी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002941
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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