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________________ मुहपत्ति तथा शरीर की प्रतिलेखना के ५० बोल का सचित्र सरल ज्ञान १२ इसी तरह हथेली के बीच में स्पर्श किए बिना मुंहपत्ति रखकर 'सुगुरु' बोलना चाहिए। इसी तरह हथेली के अन्त में स्पर्श किए बिना मुहपत्ति रखकर 'सुधर्म' बोलना चाहिए। हथेली के अन्त से कहनी तक स्पर्श किए बिना मुहपत्ति को ले जाते हुए मन में 'आदरूं' बोले । (चित्र सं.९ से । १२ के अनुसार आगे क्रमानुसार 'ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरूं' और मन-गुप्ति, वचन-गुप्ति, काय-गुप्ति आदरूं'...बोलें।') हाथ के मध्यभाग से जैसे पखारते हों, हाथ के तीन विभाग की कल्पना कर इस प्रकार मुँहपत्ति को स्पर्श कर कुदेव, कुगुरु, सीधा प्रतिलेखन करते हुए 'हास्य', कुधर्म परिहरु' बोलना चाहिए। (चित्र सं. १३ के बीच में प्रतिलेखन करते हुए 'रति' ___ अनुसार 'ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, तथा उल्टा प्रतिलेखन करते हुए चारित्र विराधना परिहरु' तथा 'मनदंड, वचनदंड, 'अरति-परिहरूं' ऐसा बोलना चाहिए। कायदंड परिहरु क्रमशः बोलें। चित्र सं. १४ के अनुसार मुंहपत्ति बाएँ हाथ में तैयार कर दाहिने हाथ के तीन विभाग की कल्पना कर क्रमशः 'भय, शोक, दर्गछा परिहरूं' ऐसा बोलना चाहिए। १८ आँखों आदि अंगों की प्रतिलेखना के लिए मुहपत्ति के छोर खुले और कड़े रहें, इस प्रकार चित्र के अनुसार तैयार करें। वैसी महपत्ति से दोनों आँखों के । बीच के भाग की प्रतिलेखना करते हुए कृष्ण लेश्या' बोलें। तैयार किए गए खुले तथा कड़े छोर को सीने की ओर फिराना चाहिए तथा उस समय दोनों हथेलियों को खोलकर सीने की तरफ करें। (चित्र सं. १६-१७ के अनुसार मुहपत्ति तैयार करने से उन अंगों की मुहपत्ति से मात्र स्पर्शना ही नहीं बल्कि प्रतिलेखना होगी।) day Jain Educationpatellignals ७८
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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