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________________ • एल्युमिनियम, तुच्छ कागज के गत्ते अथवा लोहे के स्क्रू-नट तथा प्लास्टिक से मढे हुए दर्पन नहीं रखना चाहिए । दर्पन व पंखा पूजा । दर्पन दर्शन तथा पंखे डुलाने की विधि · • सोना-चांदी अथवा पित्तल के गत्ते तथा नक्काशीदार दर्पण रखना चाहिए । • प्रभुजी के मुखदर्शन के लिए उपयोगी दर्पन में कभी भी अपना मुख नहीं देखना चाहिए। यदि भूल से भी देख लिया हो तो उस दर्पन का त्याग कर देना चाहिए । • यदि सम्भव हो तो मंदिर तथा स्वद्रव्यवाले दर्पन पर योग्य कवर से ढंककर रखें। १२८ चामर - पूजा करते समय ध्यान रखने योग्य बातें • दोनों हाथों में एक-एक चामर रखकर चामर के साथ आध झुककर 'नमो जिणाणं' कहना चाहिए । • स्वद्रव्य का चामर बहुत छोटा न हो तथा उसके बाल गंदे नह होने चाहिए। बड़े चामर से विशेष भाव प्रगट होता है । • सुयोग्य दर्पन को अपने हृदय के नजदीक पीछे का भाग रखकर आगे के भाग से प्रभुजी का दर्शन करना चाहिए । • प्रभुजी के दर्शन होने के साथ ही उचित रूप से चारों ओर सरलता से घूम सके, ऐसा पंखा झुलना चाहिए । • सेवक के हृदयकमल में प्रभुजी का वास है तथा प्रभुजी की करुणापूर्ण दृष्टि की सेवक तरसता है, इस आशय से प्रभुजी को दर्पन में अपने हृदय के पास दर्शन करें तथा तुरन्त सेवक बनकर पंखा झुलना चाहिए । • • दर्पन तथा पंखे का उपयोग करने के बाद दर्पन को उलटकर रख देना चाहिए तथा पंखे को उचित स्थान पर लटका देना चाहिए । • दर्पन-दर्शन तथा पंखा झुलते समय बोलने योग्य भाववाही स्तुति : प्रभु-दर्शन करवा भणी, दर्पण-पूजा विशाल । आत्मदर्शनथी जुए, दर्शन होय तत्काल ॥ १ ॥ अन्य आराधकों को असुविधा न हो, इस प्रकार उचित दूरी प तथा उचित स्थान पर खड़े होकर चामर डुलाना चाहिए । चामर डुलाते समय दोनों पैरों को नचाते हुए तथा शरीर व थोड़ा झुकाते हुए प्रभुजी के सेवक बनने की लालसा के सा ताल के अनुसार लयबद्ध होकर उचित रूप से नृत्य कर चाहिए । चामर नृत्य के समय ढोल-नगारा - तबला - हारमोनियम- शंख बांसुरी आदि वाजंत्र भी बजाया जा सकता है। चामर नृत्य करते समय प्रभुजी के समक्ष नाग-मदारी का नृ करना उचित नहीं है। चामर नृत्य करने में संकोच नहीं रखना चाहिए। दो चा सुलभ न हो तो एक चामर तथा एक हाथ से नृत्य कर चाहिए। • जब मंदिर में मात्र महिलाओं की ही उपस्थिति हो, उसी सम महिलाओं को रागविनाशक चामर नृत्य करना चाहिए। पर पुरुषों की उपस्थिति में दोनों हाथों में अथवा एक हाथ चामर लेकर दोनों पैरों को सीमित थिरकन के साथ सामा नृत्य करना चाहिए । चामर नृत्य करते समय सुमधुर स्वर से बोलने योग्य स्तोत्र कुन्दावदात-चल-चामर-चारु - शोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम् । उद्यच्छशाङ्क- शुचि-निर्झर-वारि-धार, मुच्चै - स्तटं सुर-गिरे -रिव-शात कौम्भम् ॥ ३० ॥ अर्थ : हे प्रभुजी ! उदित होते हुए चन्द्रमा के समान निर्म झरने के पानी की धाराओं से शोभित, मेरु पर्वत के ऊँचे स्वर्ण शिखर की भांति, मोगरा के पुष्प के समान उज्ज्वल हिलते हुए चा की शोभायुक्त आपका कान्तिमय शरीर सुशोभित हो रहा है । ३० al Use Cly
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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