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[पोड
आबूरास। [भास]
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॥ ४७
॥ ४८।
अनेक संघपति आबुइ आवहिं, कनक कपड निमिजिणु पहिरावहिं पूजहि माणिक मोतिय हले, किवि पूजहिं सोगंधिहिं फूले । केवि हु हियडय भावण भावहिं, केवि हु मंनीणइ आराहहिं केवि चडावलि नेमि नमीजइ, रासु वयणु पाल्हण पुत्र कीजइ । बार संवच्छरि नवमासीए( १२८९), वसंत मासु रमाउल दीहे एह राहु(सु ! ) विस्तारिहिं जाए, राषइ सयल संघ अंबाई । राखइ जाखु जु आछइ खेडइ, राखइ ब्रह्मसंति मूढेरह
॥४९।
॥ ५०।
॥ आबूरासः समाप्तः ।।
१ माणेक अने मोतीना फूलथी ॥
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