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________________ १०७ ॥ ३२ ॥ ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ ॥ ३५॥ ॥३६॥ ॥ ३७॥ परिशिष्टम् ] आबूरास । निवसए बिंबु जो सालह संठिओ, विजयसिणसूरि गुरि पढम पतीठिओ। निपनु परिपूरनु सामलदेउ, धणु तिजपाल जिणि आबुय नेओ धवलसुत सुरहि पुत ठविय तहिं रहवरे, खडइ सुहडा सुमुहुआ आबुय गिरवरे । नयरवर गामह माहिहि आवए, सइत भवियहो जिण पहेरावए आबुय तलवटे रत्थु पहूतओ, तेणीय ऊवरणीय पाज चडंतओ। थडऊथडइ रहु पाज विसमी खरी, वेगि संपत्त अंबिक वर अच्छरी सानिधि अंबाइय रत्थु चडंतओ देवलवाडए दिणि छठइ पडतओ ठवणिआबुय सिहरि संपत्तु देउ पहु नेमिजिणेसरु । वणसइ सवि विहसणहं लग्ग आइउ तित्थेसरु उच्छंगिहि जुगादिजिणु जिणु पहिलउ ठविजइ । तुहं गरुयउ निमिनाथ बिंबु तिजपालिहिं कीजइ हक्कारहु वर जोइसिय पइठह दिणु जोयहु । तेडावहु चउविहहं संघु पुर-पाटण-गामहं बार संवच्छरि छियासियए( १२८६ ) परमेसरु संठिठ । चेत्रह तीजह किसिण पखि निमि भुवणिहि संठिउ बहु आयरिहिं पयट्ठ किय बहु भाउ धरंता । रागु न(त) वद्धइ भवियजणाहं निमितित्थु नमंतह श्रावे हंडावडा तणे जिणु पहिलउ न्हवियउ । पाछइ न्हवियउ सयल संघि तुम्हि पणमहु भवियहु [ ........................ ] तासु कल्याणिकु कीजइ । दसमि तित्थु नेमि जात रेसि संघ पासि मंगीजइ संघु रहिउ जिणि जात करिवि नेमिभुवण विसाल । पूरि मणोरह वस्तुपाल मंति तेजपाल मूरति बपु असराज तणी कुमरादि विभाया । काराविय नेमिभुवणुमाहि बिहु निम्मलकाया काराविउ निमिभुवण फल लयउ संसारे । निसुणहु चरितु नदन्ते (ते ? ) तिणि धंधूय प्रमारे रिषभमंदिरु सासणि जाणुं धुंधुय दिन्नउ डकडवाणिउं गाउं । तिणि सुमसीहि उजालिउ नाउं नेमिहि दिन्नु डवाणिउ गाउं ॥ ३८ ॥ ॥ ३९॥ ॥ ४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ ॥१४॥ ॥४५॥ ॥४६॥ १ बपु पिता ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002919
Book TitleVastupal Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1963
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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