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सन्देशरासक - शब्दकोष दुक्खिजि १८५ (१) =दुःखार्ता धुक्खंतिय १०७ धुक्ष् ज्वलन्ती दुक्खिनिया ८५= दुःखाकीर्णा
(गु. धखy) (गु. दुक्खिणी) धुत्त १९२ धूर्त दुग्ग ८२ दुर्ग, २०८ दुर्गम अप्राप्य Vधूअ धूपय, धूइजइ १८९ दुग्गच्चिय १८ [दौर्गत्य+इक ] दुर्गत धूम १०९ दुग्गम ११७ दुर्गम
'धूव १६९ धूप दुच्चिय ११२ [ द्वौ चैव द्वावपि दुत्तर १४२ दुस्तर
पउयण १०२ प्रयोजन "दुद्धर° १४८ दुर्धर
पउक्क १११, पउक्कय २१७ (2) प्रयुक्त दुम्म १२४ द्रुम
पउदंडउ १४० (पयदंडउ) पगदंडश्चरणदुसह १२०
मार्गः (गु. पगदंडो, पगडंडो) दुसहउ १४८ दुःसह दुस्सह १३१
पउम ११७ पद्म
पउहर २४ पयो दूअ १९७, °दूअय १९६ दूत
पय १२१ [ पद ] शब्द दूर° १९२ देह (स्त्रीलिंग) ७८ (गु. देह)
पय ५४ पाद, पउ मोडय ६८ = उपविश
(गु. पग मांडवो)
पय १४१ पयस् धयरट्ट २४,१७१ [धृतराष्ट्र] हंस Vपयट्ट-प्रवृत्, पयउ ११७ घण° ७९ धनं गोकुलम् (गु. धण) पयड १८८ प्रकट धणु १८५ धनुष्
पयहत्थिण १४१ (१) पादत्राणहस्ताः धन्नय ९४ धन्य
V पयास प्रकाशय् पयासियइ ४३, पयाधम्मिल्ल २५ धम्मिल १०६
सहि १२१, पयासिसु ११७, Vधर (गु. धरv) धरइ ५०, धरन्ती
°पयासिय १९ २१७, धरति १०० = अधरिष्यत् (गु. | पयोहर १७७ धर धरत), धरु १०२, धरि १०९, धरेवि पक्खित्तिय १७० प्रक्षिप्ता १०७, धरणउ ७१
पञ्चक्ख १२२, २०९ [प्रत्यक्ष ] साक्षात् धर १३२ धरा
पच्चल्ल (?) पच्चिल्लइ १२० प्रेरयति 'धर° १४८
पञ्चूस १७९ प्रत्यूष धरत्ति ४१ (रि) धरित्री (गु. धरती) | पच्छिम १५५ [ पश्चिम ] शेष धवल° १४३ श्वेत (गु. धोळु)
पच्छुत्ताणिय १९९ [पच्छ (< पश्च°)+ धवलिय १६३ धवलित (गु. धोब्यु)
उत्ताणिय ] पश्चात्तापो जातः (गु. धवलहर १८४ [धवलगृह ] प्रासाद
पसताणी, धार° १४८ धारा (गु. धार)
पजलंत २०८ प्रज्वलत् धिट्ठ १३९ पृष्ट (गु. धीट)
V पड= पत् (गु. पडवू) पडत १३६, Vधीर = धीरीभू, धीरि १०२, Vधीरव = पडि २८, पडिय १११
धीरय (गु. धीरवधू) धीरवइ २६६ | पडह १७४ °ट (गु. पडो, पडो बजडाववो) धूइण १९३ (१) धूमेन
पडिउत्त २२२ [प्रतिवृत्त ] प्रस्थित, प्रयुजित धुय २०९ ध्रुवं (उत्प्रेक्षायाम् ) मन्ये
(प्रयुक्त)?
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