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________________ सन्देश रासक णवघणरेहविणग्गय' निम्मल' फुरइ करु, सरयरयाणि पञ्चक्खु झरंतर अमियभरु | तह चंदह जिणणत्थु पियह संजणिय सुहु, कइयलग्गि' विरहग्गिधूमि झंपियउ" मुहु ॥ १२२ ॥ बंककडक्खिहि" तिक्खिहि " मयणाकोयणिहिं", 14 भणु वह कई दियहि झुरंतिहिं " लोयणिहिं । जालंधरि" व सकोमलु" अंगु सोसंतियह ", पद्य १२०-१२३ ] 19 20 हंससरिस सरलयवि यहि लीलंतियह " ॥ १२३ ॥ इम" दुक्खह तरलच्छि कांइ" तइ" अप्पियइ ", दुस्सह" विरहकरवत्तिहि" अंगु करप्पियई । 1 1 C °विणग्गउ | 2 C निम्मलु । 3 A सरइ । 4 A रइणि । 5 A पंचक्ख । 6 B सुरतउ । 7 C जिणणत्थ | 8 A कईअ अग्गि । 9B नास्ति 'धूम' 10 C कंपियउ । 11 B C °डिक्खिहि । 12 A तिक्खि; B तिक्खहि । 13A मयणुक्कोयणिहि; BC कोइणिहि । 14 A कय । 15 A झुरंतउ | 16 C जालंधर | 17 A B सकोयलु । 18 C सुसंतियह। 19 C लीलंतियहि । 20 B इमइ दुक्ख । A B काइ | 22 A तणु। 28 A अप्पीअइ । 24 C दुसहु विरहु । 25 C करवित्तिहि । 26 A करीप्पीअइ । 21 [ टिप्पनकरूपा व्याख्या ] [१२२] नूतनमेघरेखाविनिर्गतचन्द्रवद् निर्मलं तव वदनं वर्त्तते । यथा रजन्यां प्रत (त्य) क्षो अमृतकरो अमृतं झू (झ) रन् सो (शो) भते । तद् वदनं चन्द्रसदृक्षं कं दिनमारभ्य विरहानौ झपितः (तम्) - श्यामीकृत (तम् ) इत्यर्थः ॥ १२२ ॥ ५१ [१२३] वद कं दिनमारभ्य वक्रकटाक्षतीक्ष्णाभ्यां मदेन कूणिताभ्यां वर्षन्ती वर्त्तसे । कदलीवत् सकोमलदलं अङ्गं शोषयन्ती, हंससदृक्षां सलिलां गतिं सरलयन्ती कं दिनमारभ्य वर्त्तसे ॥ १२३ ॥ [ १२४ ] कं दिनमारभ्य एवं दुरका ( दुःखा ) य तरलाक्षि ! त्वया निजात्मा अते । [ अवचूरिका ] 冬冬冬 本 [ १२२ ] नवघनरेखाविनिर्गत निर्मल स्फुरत्करः शरद्वजन्यां प्रत्यक्षममृतभरं क्षरन् एवंविधो चन्द्रः, तस्य जयनार्थ प्रियस्य संजनितसुखमेवं विशिष्टं मुखं कं दिनमारभ्य विरहाभिभूत्रेण शम्पितम् ॥ Jain Education International [१२३] वक्रकटाक्षतीक्ष्णाभ्यां मदनाकोचनाभ्यामेवंविधाभ्यां लोचनाभ्यां भण कं दिनमारभ्य क्षरभ्यां वर्तसे । जालन्धरी = कदलीवत् सकोमलमङ्ग शोषयन्ती वर्तसे । हंससदक्षां गतिं सरलां कृत्वा लीलयन्ती वर्तसे । प्रायः स्त्रियः सकामा वक्रगतयः ॥ [ १२४ ] हे तरलाक्षि ! एवं पूर्वोक्तप्रकारेण त्वया भवत्या अनं दुःखाय किमित्यर्प्यते । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002918
Book TitleSandesha Rasaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1945
Total Pages282
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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