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________________ भद्रबाहुसंहिता (७; १५)मां ऋज्वी, अतिवक्रा, वक्रा, अने विकला ए जे चार नामो बुधनी गतिओना वधाराना जणाव्या छे ते भ. सं. मां बिलकुल जणाव्या नथी. कया कया नक्षत्रोमां बुध विचरण करे तो कई गति थाय ते बाबतमा बन्ने ग्रंथोमां तफावत छे ते आगळ कहेवाई गयुं छे छता अहीं पुनरुच्चारण कयु छे ते एटला माटे के ए वस्तु खास नोंधवा लायक छे ( भ. सं. १८, ६ थी १०. वा. सं. ७, ९ थी १२). आ बधी बाबतोमा साम्य अने वैषम्य बन्ने ग्रंथोमां छे. परंतु निम्नोक्त एक बाबतमा बन्ने ग्रंथोमां साम्य विशेष छे अने वैषम्य ओछु छे. ते बाबत नीचे जणावेल नक्षत्रोमां बुध विचरण करे तो शु फळ आवे ते संबंधेनी छे. भ. सं. (१८, २८, २९, ३२. ३१.३१.३०. अने ३६ ) मां विशाखा. अनुराधा. ज्येष्ठा. त्रणे य पूर्वा, त्रणे य उत्तरा, श्रवण अने धनिष्ठामा बुध विचरण करे तो जे फळ उत्पन्न थाय ते फळ अने वा. सं. (७४, ४, ४, ७, २, २, २) मा जणाव्युं छे ते फळ वच्चे घणुं ज साम्य छे-शुभता अने अशुभतानी दृष्टिए. विगतमा अने विस्तारमा थोडो तफावत जे आवे छे ते उपेक्षणीय जेवो छे. बुध केवा रंगनो होय तो प्रशस्त ते संबंधेना कथन पूरतो पण बन्नेमा संवाद छे (भ. सं. १८३७. वा. सं. ७,२०). अंगारकचार भ. सं. ना ओगणीसमा अने वा. सं. ना छठा अध्यायमा आ अंगारकचार वर्णव्यो छे. मंगळना पांच वक्र कहेवामां आव्या छे ए बाबत बन्ने संहिता ग्रंथोमा सामान्य छे परंतु ए पांचे य वक्रोना नाम पूरतो बन्नेमा तफावत छे. भ. सं. (१९; ११) प्रमाणे ए वक्रोना नाम उष्ण, शोषमुख, व्याल, लोहित, अने लोहमुद्गर एवा आपवामां आव्या छे अने वा. सं. (६१-५) मा तेमने अनुक्रमे उष्ण, अश्रुमुख, व्याल, रुधिरानन, अने असिमुशल कयां छे. ए उपरथी जोई शकाशे के पहेलो अने त्रीजो वक्र बन्नेमा समान छे ज्यारे बीजा, चोथा, अने पांचमा वक्रना नामोमां फेर छे. ए उपरांत, वा. सं. प्रमाणे बीजो फेर ए छे के त्रीजा, चोथा, अने पांचमा वक्रने, मंगळ जे नक्षत्रमा अस्त थयो होय ते नक्षत्रथी गणवानुं छे; नहीं के पहेला बे वक्रमा मंगळना उदयथी जेम गणवान कहेवामां आव्यु छे. ए वक्रोना फळो पूरतो पण तफावत बन्ने संहिता ग्रंथोमां छे (वा. सं. ६; ११ थी २३). पहेला अने बीजा वक्रतुं फळ बन्नेमा एक सरलुं छे. भेद ए के वा. सं (६; ३) प्रमाणे त्रीजा अने चोथा वक्रना फळ तरीके सुभिक्षने पण गणाववामां आव्यो छे. बीजो तफावत बन्ने संहिता ग्रंथोमा ए छे के मंगळ रोहिणीनी परिक्रमा करी दक्षिणमा जाय तो सर्व माटे अभय करनारो छे एम भ. सं. (१९७) मां कयुं छे ज्यारे वा. सं. (६९) मां एथी तद्दन उलटुंज एटले के मरकी थाय एम कयुं छे. वळी भ. सं. (१९, ९) मा एम पण कडुं छे के एथी शोक अने भय उत्पन्न थाय. आवो विरोध एकना एक ग्रंथमां अने एक ज अध्यायमा देखाय ए ग्रंथना मूल्यांकनमा घणो घटाडो करे छे. भ. सं. मां कृत्तिकादि सात नक्षत्रोमां (१९; २५), मघादि सातमां (१९; २७), अनुराधादि सातमा (१९; ३०), अने धनिष्टादि सातमां (१९; ३२) मंगळ वक्री थाय तो तेनुं शुं फळ आवे ते जणाव्युं छे परंतु वा. सं. (६,११-१२) मां मंगळ विचरण करे तो शुं फळ आवे ते जणाव्यु छे तेथी बन्नेनी तुलना करवी अनुचित छे. छेवटे ए कहेवार्नु रहे छे के मंगळ अमुक आकृति अने वर्णनो होय तो शुं फळ आपे ए बाबतना कथनमा बन्ने संहिता ग्रंथो (भ. सं. १९:३९. वा. सं. ६, १३) मा संगति छे. राहुचार भ. सं. ना वीसमा अध्यायमा अने वा. सं. ना पांचमा अध्यायमा राहुचार वर्णववामां आव्यो छे. ग्रहण थवाना कारणोनुं वर्णन करवामां भ. सं. ना आ अध्यायनो मोटो भाग रोकवामां आव्यो छे. वा. सं. मां आ कारणोने (५; ६३) संक्षिप्त रीते जणावी देवामां आव्या छे. भ. सं. (२०; १०-११) मां कडं छे के पशु, व्याल, अने पिशाचना जेवी आकृति वाळा वादळाओ, वात, उल्का, पांडुररंगी सूर्य, भूमिकंपन (२०३६) अभ्रस्तगित, करा, वीजळी, पक्षीओना रोवानो अवाज, वगेरे वगेरे जणाय अने थाय तो राहुनुं आगमन थयु एम समजचं. तेमां एम पण अणाव्युं छे के (२०, ५६) उत्पातो, निमित्तो, शकुन, अने लक्षणो पर्व काळे थाय तो पण राहुर्नु आगमन थयुं छे तेम समजवू. वा. सं. (५, ६३) मां ढूंकामां एम जणाव्युं छे के वायु, उल्कापात, धूरि, भूमिकंप, अंधकार, वज्रपात वगेरे थाय तो राहुनु आगमन थाय छे. आ रीते आ बाबत पूरतो बन्नेमां संवाद छे. ___ भ. सं. (२०, २, ५७ ) मां राहु केवा रेगनो होय तो केवु फळ आपे ए विषे जणावतां उक्त गाथामां कयुं छे के राह, धोळो, रातो, पीळो, विवर्ण, अने काळो होय तो अनुक्रमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, विजाति अने शूदोनो नाश करनार मानवो. वा. सं. (५,५३-५९) मां आ घटनानुं विस्तृत वर्णन करवामां आव्युं छे. एना विस्तारमा न उतरतां चातुर्वण्य पूरतो अमुक रंग वाळो राहु केतुं फळ आपे छे ए जोइए. एमां कडंछे के श्वेत वर्ण वाळो राहु ब्राह्मणोनो (वा. सं. ५,५९), पीळा रंग वाळो वैश्योनो ( वा. सं. ५, ५७), अने काळा रंग वाळो शुद्रोनो (वा. सं. ५, ५६) नाश करे छे. आ उपरथी समजाशे के आ बाबत पूरती बन्नेमां संपूर्ण संगति छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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