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________________ प्रस्तावना “भद्रबाहु संहिता" (भ. सं.) नामना आ ग्रंथनी साधारण जनतामा अने अधिकारी विद्वान वर्गमा घणी सारी एवी प्रतिष्टा छे. संस्कृतमा तेम ज गुजराती अनुवाद रूपे आ ग्रन्थ बहार पडी गयेल हतो छतां आ. श्रीजिनविजयजीनी प्रेरणाथी में एनुं संपादन हाथ धयु एना खास कारणो छे. एक तो ए के बने तेटली प्रतिओ मेळवी एजें संपादन कोइए कर्यु नो'तुं अने बीजं ए के भद्रबाहु कोण, "भद्रबाहु संहिता" केटली अने क्यारे रचाणी, "भद्रबाहु संहिता"नी प्रख्यात वाराही (बृहत् ) संहिता (वा. सं.) साथे तुलना, ग्रंथना अंतरंगनुं निरूपण, तथा छंद, भाषा, अने व्याकरणनी दृष्टिए ए- मूल्यांकन इत्यादि इत्यादि आवश्यकीय प्रश्नो छणती प्रस्तावनानो तेम ज इन्डेक्सादिनो अभाव-आ बधी त्रुटिओने दूर करवा अने शास्त्रीय रीते आ ग्रन्थ- सुंदर संपादन थाय ए दृष्टिथी में आ काम हाथमा लीधुं तुं. एमां हुँ केटले अंशे सफळ थयो छु तेनी आंकणी करवानें काम तो वाचकोनुं छे. भद्रबाहु अने "भद्रबाहु संहिता" भ. सं. नामना आ ग्रंथना लखनार भद्रबाहु हता एम आ ग्रंथना नाम उपरथी ज स्पष्ट छे एटले ए भद्रबाहु कया अने ए ग्रंथ भद्रबाहुए क्यारे, कई भाषामां, अने क्या लख्यो वगेरे वगेरे बाबतोनो विचार अत्यारे प्रस्तुत छे. आ ग्रंथना प्रथम अध्यायना आरेभना श्लोकोनो सारांश आ विगतोनो विचार करवामां मददरूप थई पडे तेम छे तेथी नीचे आप्यो छे: __ मगधमा पूर्व अनके विध जनपदोथी युक्त एवं प्रख्यात राजगृह नामर्नु नगर हतुं. तनो राजा, विविध शुभगुणोथी अलंकृत सेनजित् नामनो हतो. ते नगरमा नाना प्रकारना वृक्षोथी, अनेकविध पशु-पक्षीओथी, सरोवरोथी अने साधु पुरुषोथी व्याप्त एवो विख्यात पांडुगिरि नामनो पर्वत हतो. एना उपर महात्मा, ज्ञान-विज्ञानना सागररूप, तपोयुक्त, निरामय, श्रेयस्साधक, द्वादशांगना पारगामी, महाद्युतिवंत, तत्त्वज्ञ, अने शिष्य-प्रशिव्यना मोटा समुदाय वडे परिवृत्त एवा निग्रंथ भद्बाह नामना आचार्य बेठा हता. तेमने प्रीतिवंत, दिव्य ज्ञानने प्राप्त करवानी इच्छावाळा शिष्योए नमस्कार करी, राजाओना हित माटे,प्रजाना कल्याण माटे, भिक्षुओना भला माटे अने श्रावकोना लाभ खातर दिव्य ज्ञाननो उपदेश आपवा विनंति करी. कारण के विजिगीषा धरावनार स्थिर मति राजा, शुभाशुभने बतावनाएं दिव्य ज्ञान पामी राज्यन रक्षण सम्यक् रीते करी शक छ; तेम ज राजसन्मानने पामेल, धर्ममा तत्पर एवा भिक्षुओ तेथी करी उद्वेग रहित राज्यमा विहरी शके छे; औत्पातिक बनावोने अगाउथी जाणी भिक्षुओ धनधान्ययुक्त निरुपद्रव देशोमां जई, आवी शके छे; वळी श्रावको पण ए ज्ञानने बळे स्थिर संकल्प बनी सर्वज्ञभाषित तीर्थने न छोडे अने बीजा तीर्थनो आशरो न ले. आ जगतना दरेक मनुष्य माटे दिव्य ज्ञान सुखावह छ- परपिंड उपर जीवनार भिक्षु वर्ग माटे खास करीने. द्वादशांग विस्तीर्ण छे; भिक्षुओनो मतिहास धीमे धीमे काळानुसार उत्तरोत्तर थतो रह्यो छे; माटे 'हे प्रभो ! सर्वज्ञभाषित तथ्य निमित्तने शिष्योपकार माटे संक्षिप्त पणे अने सुखेथी ग्रही शकाय तेवी रीते कहो'. (१, १-१४). आ प्रमाणे उपक्रम करी शिष्योए भद्रबाहुखामीने विज्ञप्ति करी तेथी भगवान, श्रमणोत्तम, अने द्वादशांगविशारद दिग्वासा भद्रबाहु आचार्य जिनभाषित निमित्तनो संक्षिप्तपणे तेम ज विस्तारपूर्वक एम बने रीते शिष्यो समक्ष स्फोट को (२१-२). आवी मतलबना प्रस्ताव वडे आभ. सं. नामना ग्रंथनो आरंभ थयो छे. ___ आ ग्रंथमा 'द्वादशांग' शब्द ( १, ५, १३; २; १), 'निर्ग्रय' शब्द ( १, ५), 'सर्वज्ञभाषित' शब्द (१, ११, १४), 'जिनभाषित' शब्द (२२), 'दिग्वासा' शब्द (२१), 'निग्रंथ शासन' शब्द (४,२८), अने 'भद्रवाहवचो' शब्दो (३; ३१, ६४; ६; १७; ७, १९, ९, २६, १०, १६, ४४, ५२; ११, २६, ३०; १२; ३७; १३, ७४, १००, १७८; १४, ५४, १३६, १५,३६, ७२, १२७)तेम ज लगभग बधा अन्यायाना अत "शत नग्रन्थे भद्रबाहुके । अथवा “भद्रबाहुसंहितायाम्” (जीजा अध्यायना अंते ) शब्दो मळी आवे छे ए उपरथी तेम ज आरेभना चौद श्लोकोना उपर्युक्त सारांश उपरथी निम्न लिखित मुद्दाओ उभा थाय छे: (१) आ ग्रंथनी उत्पत्ति पूर्व मगधमा आवेल सेनजित् राजाना राजगृह नामना नगर आसपास आवेल पांडुगिरि पर्वत उपर पई हती. (२) जिनभाषित, सर्वज्ञ कथित द्वादशांगमांथी उद्धृत करी निग्रंथ भगवान भद्रबाहुए दिव्यज्ञान आपवा वाळो आ "निमित्त संहिता" नामनो ग्रंथ रच्यो हतो. भद्र० प्रस्ता. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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