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४३] चतुर्थ अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चउत्थं अज्झयणं : असंखयं चतुर्थ अध्ययन : असंस्कृत
असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं ।
एवं वियाणाहि जणे पमत्ते, कण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति ॥१॥ जीवन असंस्कृत है, टूटने पर जोड़ा (सांधा) नहीं जा सकता। अतः प्रमाद (आलस्य), आत्म-विस्मरण मत करो। वृद्धावस्था में कोई शरण नहीं होता। ऐसा जानो (विचार करो) कि प्रमादी, हिंसक, असंयमी तथा अजितेन्द्रिय मनुष्य किसकी शरण ग्रहण करेंगे ॥१॥
Life is irreparable, if broken joint is impossible. Hence do not be negligent. Never forget your soul. Old age has no protection. Consider, careless, violent, non-restrained and overcome by senses-what refuge will take such persons. (1)
जे पावकम्मेहि धणं मणुस्सा, समाययन्ती अमइं गहाय ।
पहाय ते पासपयट्टिए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उवेन्ति ॥२॥ जो मानव अज्ञान एवं दुर्बुद्धिवश पाप कर्मों से धन का उपार्जन एवं संचय करते हैं वे पाप बंधन में पड़े हुए मनुष्य धन को यहीं छोड़कर तथा वैर (शत्रुता) का अनुबंध करके नरक में उत्पन्न होते हैं ॥२॥
The persons overwhelmed by ignorance and evilmindedness earn and accumulate wealth by sinful deeds, those people falling in the snare of sins, go to the hell bearing enmity and leaving the wealth here. (2)
तेणे जहा सन्धि-मुहे गहीए, सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । __ एवं पया पेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ॥३॥ जिस प्रकार सेंध लगाता हुआ संधिमुख (मौके पर) पकड़ा गया चोर अपने ही पाप कर्मों से मृत्यु (आस, पीड़ा, छेदन-भेदन) पाता है इसी प्रकार जीव अपने ही किये हुए कर्मों के कारण इस लोक तथा परलोक में छेदन-भेदन आदि पाता है। क्योंकि किये किये हुए कर्मों का फल भोगे बिना कभी छुटकारा नहीं वा ॥३॥
Like the wall-breaker caught red handed, is tortured due to his own sinful deeds, in the same way the soul is tortured in this and next life. Because none can get rid of the karma Cactions) done by himself. (3)
संसारमावन्न परस्स अट्ठा, साहारणं जं च करेइ कम्मं ।
कम्मस्स ते तस्स उ वेय-काले, न बन्धवा बन्धवयं उवेन्ति ॥४॥ संसारी जीव अपने व दूसरों (स्त्री-पुत्रादि) के लिए साधारण (सम्मिलित लाभ की इच्छा से) कर्म करता है। किन्तु उस कर्म के फलभोग के समय बन्धुजन सहायक नहीं होते ॥४॥
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