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३३] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विशेष स्पष्टीकरण गाथा ३-"कालीपव्वंगसंकासे" में "कालीपव्व" का अर्थ-काकजंघा नामक तृणविशेष है (चूर्णि)। डॉ. हर्मन जेकोबी तथा डॉ. सांडेसरा आदि आधुनिक विद्वान इसका अर्थ "कौए की जांघ" करते हैं जो शरीर की अत्यन्त कृशता का सूचक है।
गाथा १३-चूर्णि के अनुसार मुनि जिनकल्प अवस्था में अचेलक रहता है। वृ. वृ. के मतानुसार जिनकल्पी मुनि अचेलक रहते हैं। स्थविरकल्पी भी वस्त्र प्राप्ति के अभाव में अचेलक रह सकता है।
गाथा २५-ग्राम कण्टक-कानों में कांटों के समान चुभने वाले कठोर शब्द (चूर्णि)।
गाथा ३९-चूर्णि के अनुसार "अणुक्कसाई" के दो रूप होते हैं-अणुकषायी-अल्पकषाय वाला और अनुत्कशायीसत्कार-सम्मान आदि के लिये उत्कंठा न रखने वाला।
गाथा ४३-उपधान-आगमों का विधिवत् अध्ययन करते समय परम्परागत निश्चित विधि के अनुसार जो आयंबिल आदि तप किया जाता है, वह उपधान है. (बृ. वृ.)
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Salient Elucidations
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Gathả 3-In the phrase kälipavvangasankäse the word Kalipavva according to Curņi stands for a particular grass or straw named as Kākajangha. But the modern scholars like Dr. Jacobi and Dr. Sāndesară accept it as the leg or thigh of crow. It shows the leanness of body.
Gatha 13-Monk remains without cloths in Jinakalpa tradition (Curni). Jinakalpi monks remain without cloths. But sthavira kalpi ascetic also may remain clothless, if he does not get robe from house holders.
Gathā 25-Grāma Kantaka-Harsh words piercing ears like thorns (Curni).
Gathā 39-According to Curni the word anukkasai. has two forms -(1) Anukasāyihaving a few passions and (2) Anutkaśāyi-non-eager for welcome, honour etc.
Gathā 43-While studying canonical scriptures, according the prescribed method at that time traditionally definite ayambila penances are observed, that is upadhana.
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