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५३७ ] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जो जीव (मरण समय में) मिथ्यादर्शन में अनुरक्त, निदान सहित - निदान से युक्त और हिंसक ( हिंसाभाव वाले) होते हैं- इन भावों में मरण करते हैं, उनके लिए पुनः बोधि प्राप्ति दुर्लभ होती है || २५७ ||
At the time of death the souls indulged in wrong belief, with volition and thoughtful of violence-quit their present body-frame, engulfed in these thoughts, for them the attainment of right knowledge becomes difficult. (257)
सम्मर्द्दसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा ।
इय जे मरन्ति जीवा, सुलहा तेसिं भवे बोही ॥ २५८ ॥
जो जीव सम्यग्दर्शन में अनुरक्त हैं, निदान (आगामी भोगाकांक्षा) से रहित हैं, शुक्ललेश्या में अवगाढ़ ( निमग्न) हो जाते हैं तथा इस प्रकार ( इन भावों में) मरण प्राप्त करते हैं, उनके लिए पुनः बोधि प्राप्ति सुलभ होती है || २५८ ॥
The souls engrossed in right faith, devoid of volition and enveloped in white tinge, and quit their present body-frame in these thoughts, they attain easily right knowledge again. (258)
मिच्छादंसणरत्ता, सनियाणा कण्हलेसमोगाढा | इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ २५९ ॥
जो जीव मिथ्यादर्शन में अनुरक्त, निदान सहित और कृष्णलेश्या में निमग्न होकर मरण को प्राप्त करते हैं, उनके लिए पुनः बोधि की प्राप्ति दुर्लभ होती है ॥ २५९ ॥
The souls indulged in wrong faith, having desire of future sensual pleasures and engrossed in black tinge-die in such thoughts, for them attainment of right knowledge becomes difficult. (259)
जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेन्ति भावेण ।
अमला असंकिलिट्ठा, ते होन्ति परित्तसंसारी ॥ २६०॥
जो जीव (अन्तिम समय तक ) जिन-वचनों में अनुरक्त रहते हैं, जिनेन्द्र भगवान के वचनों के अनुसार भावपूर्वक आचरण करते हैं, वे निर्मल और राग-द्वेष आदि से असंक्लिष्ट (क्लेश युक्त भावों से रहित ) रहकर परिमित संसारी होते हैं ॥ २६०॥
The souls till the end of their lives, are inclined to the dialects of Jinas, and lead their lives according to the precept of Jinas with pious hearts; these pure and free from the thoughts of attachment and detachment, their cycle of births and deaths is lessened. (260)
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बालमरणाणि बहुसो, अकाममरणाणि चेव य बहूणि । मरिहिन्ति ते वराया, जिणवयणं जे न जाणन्ति ॥ २६१ ॥
जो जीव जिन वचनों को नहीं जानते, वे बेचारे बहुत बार बालमरणों और अकाममरणों से मरते रहते हैं ॥२६१॥
Those who are not aware of the precepts of Jinas, such pitiable persons die with unwilling death several times. ( 161 )
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