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५२९] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सव्वट्ठसिद्धगा चेव, पंचहाऽणुत्तरा सुरा ।
इइ वेमाणिया देवा, णेगहा एवमायओ ॥२१६॥ और (५) सर्वार्थसिद्धक-ये पाँच प्रकार के अनुत्तर (विमावासी) देव हैं। इस तरह वैमानिक देव अनेक प्रकार के कहे गये हैं ।।२१६॥
And Sarvārthasiddhaka-these five kinds are of anuttara gods-dwelling in these five vimānas (planes) so these are called anuttara vimānavāsi gods. Thus Vaimānika gods are called of several kinds. (216)
लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे परिकित्तिया ।
इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥२१७॥ ये सभी (चारों निकायों के) देव लोक के एक देश (अंश या भाग) में कहे गये हैं। इससे आगे मैं चार प्रकार से उनके काल-विभाग को कहूँगा ॥२१७॥
All these gods (of four abodes) reside in a part of universe. Now further I shall describe the fourfold time division of all these. (217)
संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य ।
ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥२१८॥ (ये चारों निकायों के देव) संतति-प्रवाह की अपेक्षा अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा सादि-सान्त भी होते हैं ॥२१८
By continuous flow all these gods of four abodes are without beginning and end but due to individual age duration are with beginning and end too. (218)
साहियं सागरं एक्कं, उक्कोसेण ठिई भवे ।
भोमेज्जाणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥२१९॥ भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति कुछ अधिक एक सागरोपम की और जघन्य आयुस्थिति दस हजार वर्ष की होती है ॥२१९॥
Longest age duration of Bhavanavāsi gods is somewhat more than one sagaropama and shortest is of ten thousand years. (219)
पलिओवमेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे ।
वन्तराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥२२०॥ व्यंतर देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक पल्योपम की तथा जघन्य आयुस्थिति दस हजार वर्ष की होती है ॥२२०॥
Longest age duration of Vyantara gods is of one palyopama and shortest is of ten thousand years. (220)
पलिओवमं एगं तु, वासलक्खेण साहियं । पलिओवमऽट्ठभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥२२१॥
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