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४७९] पंचस्त्रिश अध्ययन
इन्दियाणि उ भिक्खुस, तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराई निवारेजं, कामरागविवडणे ॥५॥
(क्योंकि) काम-राग की वृद्धि करने वाले उपाश्रय-निवास स्थान में भिक्षु के लिए इन्द्रियों का निवारण करना - रोकना दुष्कर है ॥५॥
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Because it is very difficult for a mendicant to control his senses in such a passionincreasing dwelling place. (5)
सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ । पइरिक्के परकडे वा, वासं तत्थऽभिरोय ॥६॥
(अतः) भिक्षु एकाकी होकर श्मशान में, सूने (एकान्त) घर में, वृक्ष के मूल में, परकृत (दूसरों द्वारा निर्मित मकान ) मकान में, खाली स्थानों में निवास करने की अभिरुचि (इच्छा) करे ॥६॥
Therefore mendicant should long for, becoming alone, dwell in funeral place, deserted house, root of tree and the houses prepared for others, empty place. ( 6 )
फासुम्मि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए ।
तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए ॥ ७ ॥
परम संयमी भिक्षु प्रासुक, बाधारहित स्त्रियों के उपद्रव से रहित स्थान में निवास करने का संकल्प करे ॥७॥
Most restrained mendicant should resolve to live at the place, which is pure, obstacleless and unfrequented by women. (7)
(४) चतुर्थ सूत्र : गृह समारम्भ- निषेध
न सयं गिहाई कुज्जा, व अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे, भूयाणं दीसई वहो ॥८ ॥
(संयमी साधक) न स्वयं गृह आदि का निर्माण करे और न किसी दूसरे से करवाये, क्योंकि गृह कर्म (निर्माण) के समारम्भ में भूतों (प्राणियों) की हिंसा देखी जाती है ॥८॥
Restrained practiser should not build a house by himself, nor cause others to erect one, because in building a house the injurement of many living beings is seen. (8)
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तसाणं थावराणं च सुहुमाण बायराण य ।
तम्हा गिहसमारम्भं, संजओ परिवज्जए ॥९॥
(गृह-निर्माण में ) स और स्थावर जीवों का तथा सूक्ष्म और बादर (स्थूल) जीवों का वध होता है इसलिए संयमी साधक गृह निर्माण ( समारम्भ) का सर्वथा परित्याग कर दे ॥ ९ ॥
In erection of a house many mobile-immobile, subtle-gross living beings are killed. Therefore, restrained practiser should cast off creation of a house. (9)
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