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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र पंचस्त्रिश अध्ययन [ ४७६ पैंतीसवाँ अध्ययन : अनगार-मार्ग - गति पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम अनगार मार्ग-गति है। इसका वर्ण्य विषय है कि अनगार अपने मार्ग मोक्ष मार्ग में तीव्रता पूर्वक गति किस प्रकार करे ? यद्यपि इसी उत्तराध्ययन सूत्र के २८वें अध्ययन मोक्ष मार्ग गति में ज्ञान दर्शन -चारित्र-तप- यह चतुर्विध मार्ग बताये गये हैं। लेकिन रत्नत्रय की आराधना और चतुर्विध मार्ग की साधना गृहस्थ और अनगार - दोनों के लिए सामान्य (Common) है। गृहस्थ भी सम्यक्त्वी होता है, आगमों को पढ़कर अथवा श्रमणों के प्रवचन सुनकर सम्यक् ज्ञान भी प्राप्त कर लेता है, अहिंसा आदि श्रावक व्रतों के रूप में आंशिक रूप से ही सही चारित्र का भी पालन करता है और अनशन, ऊनोदरी, स्वाध्याय आदि तप भी कर लेता है। किन्तु गृहस्थ अगार और श्रमण - अनगार की साधना में मन्दता और तीव्रता, अपूर्णता और समग्रता का मूलभूत अन्तर है । यद्यपि मोक्ष प्राप्ति की दिशा में दोनों ही अग्रसर होते हैं लेकिन अगार की गति मन्द होती है; जबकि अनगार की गति तीव्र होती है। अगार की गति मंद होने के कारण हैं - संग, संयोग, पारिवारिक जनों के प्रति मोह, सामाजिक पारिवारिक कर्त्तव्यों के पालन का उत्तरदायित्व, जीवन यापन हेतु धनोपार्जन संचय संग्रह - परिग्रह, भोजन के पचन - पाचन आदि अन्य कारणों से जीव हिंसा से पूर्णतः विरक्त होने की अशक्यता । जबकि अनगार इन सबसे मुक्त होता है, इसी कारण मोक्ष प्राप्ति की ओर उसकी गति तीव्र होती है। यद्यपि सामान्यतः गृहत्यागी को अनगार माना जाता है किन्तु सिर्फ गृहत्याग ही अनगार बनने के लिए काफी नहीं है; उसे कुछ और भी करना अनिवार्य होता है। सर्वप्रथम उसे घर, कुटुम्ब आदि के त्याग के साथ ही उनके प्रति मोह आसक्ति आदि का भी त्याग कर देना चाहिए। सर्वसंगत्यागी बन जाना उसके लिए आवश्यक है। तदुपरान्त पापानवों का त्याग, शयन- आसन- सम्बन्धी विवेक, समारम्भ वर्जन, स्वाद- त्याग, मृत्यु पर्यन्त श्रमण-धर्म पालन आदि भी अनिवार्य है। Jain Education International उसकी इन्हीं प्रवृत्तियों से उसकी गति में तीव्रता एवं समग्र-त्याग वृत्ति आती है और वह शीघ्र मोक्ष प्राप्त करता है। प्रस्तुत अध्ययन में अनगार-धर्म सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का विवेचन किया गया है और इन सूत्रों के यथार्थतः पालन की फलश्रुति मोक्ष प्राप्ति बताई गई है। इस अध्ययन में २१ गाथाएँ हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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