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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुस्त्रिंश अध्ययन [४६८
असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी कालों के जितने समय होते हैं तथा संख्यातीत (अगणित) लोकों के जितने आकाश प्रदेश होते हैं, लेश्याओं के उतने ही स्थान होते हैं ॥३३॥
There are as many places (varieties) of tinges as there are moments (indivisible shortest particle of time) of innumerable Avasarpinis and Utsarpinis and as many space points of innumerable universes (lokas). (33) (१) स्थितिद्वार
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तऽहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा किण्हलेसाए ॥३४॥ कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध (अन्तर्मुहूर्त) होती है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक तेतीस सागर प्रमाण जाननी चाहिए ॥३४॥
The shortest duration of black tinge is half muhurta or antarmuhúrta and longest duration is thirtythree sagaropamas plus antarmuhurta, it should be known. (34)
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागमभहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए ॥३५॥ नील लेश्या की जघन्य (कम से कम) स्थिति मुहूर्तार्ध (अन्तर्मुहूर्त) होती है और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर की जाननी चाहिए ॥३५॥
The shortest duration of blue tinge is half muhurta or antarmuhurta and longest duration is ten sāgaropamas plus innumerable part of one palyopama. (35)
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काउलेसाए ॥३६॥ कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध (अन्तर्मुहूर्त) और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यात भाग अधिक तीन सागर की है ॥३६॥
The minimum duration of grey (kāpota) tinge is half muhurta or antarmuhūrta and maximum duration is three sāgaras plus innumerable part of one palyopama. (36)
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोउदही पलियमसंखभागमभहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउलेसाए ॥३७॥ तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति अर्द्धमुहूर्त (अन्तर्मुहूर्त) और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागर की होती है ॥३७॥
The shortest duration of red tinge is half muhurta or antarmuhūrta and longest is of two sāgaras plus innumerable part of one palyopama. (37)
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति सागरा महत्तऽहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ॥३८॥
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