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४६७] चतुस्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
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Who loves and remain firm in religion-religious activities, afraid of sins, strives for the utmost good-such person having these symptoms is possessed by red (tejas) tinge. (28)
पयणुक्कोह-माणे य, माया-लोभे य पयणुए ।
पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं उवहाणवं ॥२९॥ जिसके क्रोध, मान, माया, लोभ पतले (मन्द) हो गये हैं, जो प्रशान्तचित्त है, जिसने अपनी आत्मा का दमन कर लिया है, जो योगवान और उपधानवान है (योग और उपधान करने वाला है)-॥२९॥
A man, whose passions-anger, pride, deceit, greed became but little, who is calmminded, who has subdued his own soul, opulent with study contemplation and observes prescribed penances-(29)
तहा पयणुवाई य, उवसन्ते जिइन्दिए ।
एयजोगसमाउत्ते, पम्हलेसं तु परिणमे ॥३०॥ जो अल्पभाषी (कम बोलने वाला) है, उपशान्त है, जितेन्द्रिय है-इन योगों (लक्षणों) से युक्त मानव पद्म लेश्या वाला होता है ॥३०॥
Who speaks very little, peaceful, controlled his senses-such person possesses yellow (padma) tinge. (30)
अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए ।
पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिहिं ॥३१॥ ___जो आर्त-रौद्र ध्यान को वर्जित करके (छोड़कर) धर्म और शुक्ल ध्यान ध्याता है, (एकाग्रचित्त होता है) जिसका चित्त (हृदय, मन, मस्तिष्क) प्रशांत है, जो अपनी आत्मा का दमन करता है, पाँच समितियों से समित है और तीन गुप्तियों से गुप्त है-॥३१॥
Who, avoiding the painful and cruel thinkings, meditates religious and pure (sukla) meditations, concentrates his mind, whose heart, head, mind is full of peace, who controls his own soul, cirmumspect by five circumspections and latent with three incognitoes-(31)
सरागे वीयरागे वा, उवसन्ते जिइन्दिए ।
एयजोग-समाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे ॥३२॥ ऐसा मानव चाहे सरागी हो अथवा वीतरागी हो (लेकिन) जो उपशांत हो, जितेन्द्रिय हो-इन योगों (लक्षणों) से युक्त मानव शुक्ल लेश्या में परिणत होता है ॥३२॥
Such person, may he be with attachment or without attachment, but must be peaceminded and overcomer of senses; he possesses white (Sukla) tinge. (32) (८) स्थानद्वार
असंखिज्जाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया । संखाईया लोगा, लेसाण हुन्ति ठाणाई ॥३३॥
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