________________
९] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिण्डं व संजए । पाए पसारिए वावि, न चिट्ठे गुरुणन्तिए ॥१९॥
संयमी साधु गुरु के सामने पालथी लगाकर न बैठे, और न दोनों भुजाओं से घुटनों को बाँधकर बैठे तथा अविनयपूर्वक पाँव पसार कर भी नहीं बैठे ॥ १९ ॥ ( चित्र देखें)
Restraint saint (well-versed disciple) should not sit in a posture with his leg on thighshams ( पल्हत्थियं), nor with crossed arms around his knees, nor stretch his legs at full length and not sit too near to his preacher. (19)
आयरिएहिं वाहिन्तो, तुसिणीओ न कयाइ वि । पसाय - पेही नियागट्ठी, उवचिट्ठे गुरुं सया ॥२०॥
मोक्षार्थी तथा गुरुकृपाकांक्षी विनीत शिष्य आचार्य (गुरु) द्वारा बुलाये जाने पर चुप बैठा देखता न रहे किन्तु तुरन्त गुरु के समक्ष उपस्थित हो जाये ॥२०॥
Salvation-wishing and seeking preacher's favour the disciplined disciple should never be unresponsive-silent on the call of preacher; but should politely approach to him. (20)
आलवन्ते लवन्ते वा न निसीएज्ज कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥२१॥
गुरु के द्वारा एक बार अथवा बार-बार बुलाये जाने पर धैर्यशाली बुद्धिमान शिष्य बैठा न रहे; तुरन्त आसन छोड़कर यतनापूर्वक गुरु के समक्ष उपस्थित होकर उनके आदेश को स्वीकार करे ॥२१॥
Calling once or many times by preacher the constant wise disciple should not remain sitting on his seat but approaching near to preacher carefully accept his command. (21)
आसण- गओ न पुच्छेज्जा, नेव सेज्जा गओ कया । आगमुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छेज्जा पंजलीउडो ॥२२॥
शिष्य अपने आसन अथवा शैया पर बैठा हुआ गुरु से कोई बात न पूछे अपितु गुरु के समीप आकर और उकडू आसन से बैठकर तथा विनयपूर्वक अंजलिबद्ध होकर पूछे ॥ २२ ॥ (देखें प्रश्न मुद्रा चित्र )
Jain Education International
Disciple should never ask any question or other thing from his preacher, sitting on his seat or but approaching near the preacher and sitting on the hams with the soles of feet touching the and (उकडू) posture and making submission with folded palms, should make any query. (22)
एवं विणय-जुत्तस्स, सुत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स, वागरेज्ज जहासुयं ॥२३॥
शिष्य के इस प्रकार, विनय से परिपूर्ण शब्दों द्वारा पूछे जाने पर गुरु भी सूत्र, अर्थ और दोनों उन्होंने जाना-सुना हो, वैसा ही यथार्थ प्ररूपण करे ॥२३॥
en asked by humble disciple observing such rules any question to his preacher, the should describe fully the sacred text, its meaning and both, as he has heard and arom tradition-preceding preceptors. (23)
For Private & Personal Use Only
www.jairelibrary.org