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४३१] द्वात्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Overwhelmed by sharp desire, the stealer of others' things, dissatisfied by sounds and seizings, due to blemish of greed his lies and deceits go on increasing, and even then he cannot get rid of pains and sufferings. (43)
मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते ।
एवं अदत्ताणि समाययन्तो, सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥४४॥ मृषा (झूठ) बोलने से पहले, बोलने के पश्चात और बोलते समय भी वह दुःखी होता है और उसका अन्त-परिणाम भी दःखरूप होता है। इस तरह शब्द में अतप्त (व्यक्ति) अदत्तादान-चोरियाँ करता हुआ दुःखी तथा अनाश्रित हो जाता है |॥४४॥
Before, after and while speaking untruth he becomes sorrowful and consequences also result in pains. Thus practising steals and dissatisfied in sweet sounds he becomes sorrowful and without protection. (44)
सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?।
तत्थोवभोगे वि किलेस दुक्खं, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥४५॥ इस तरह शब्द में अनुरक्त-आसक्त मनुष्य को कहाँ, कब और कितने सुख की प्राप्ति हो सकती है? जिसके लिए वह इतने क्लेश और कष्ट सहन करता है तथा उसके (उस सुख के) उपभोग में भी उसे क्लेश और कष्ट का ही अनुभव होता है ॥४५॥
Thus the person addicted to sweet sounds can get the delight how much, when and where; for attaining which he suffers so much difficulties and pains and while enjoying those sweet sounds only pain he feels. (45)
एमेव सद्दम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ ।
पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥४६॥ इसी तरह जो अमनोज्ञ-अप्रिय शब्दों में प्रद्वेष करता है वह भी अनेक प्रकार की दुःख परम्पराओंपरिपाटियों को उत्पन्न करता है और प्रदुष्टचित्त से वह जिन कर्मों का संचय करता है वही पुनः विपाकफलप्रदान के समय दुःखरूप ही होते हैं ॥४६॥
In the same way who hates unpleasant sounds, he also produces the chains of sufferings and accumulates the karmas by hateful mind and those karmas also bring painful fruits. (46)
सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण ।
न लिप्पए भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥४७॥ शब्द (मनोज्ञ तथा अमनोज्ञ दोनों प्रकार के शब्द) से विरक्त-उदासीन व्यक्ति को शोक-अवसाद नहीं होता और वह इस प्रकार की दुःख परम्पराओं-शृंखलाओं से भी दूर रहता है। तथा जिस प्रकार जल में रहता हुआ भी कमल-पत्र जल से निर्लिप्त रहता है उसी प्रकार मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों से विरक्त व्यक्ति भी संसार में रहता हुआ भी उन शब्दों में लिप्त नहीं होता ॥४७॥
Who is indifferent to pleasant and unpleasant sounds, he does not feel sorrow and thus remains far away from the painful chains. Just as the leaf of lotus, remaining in a large pond
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