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४२१] द्वात्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
बत्तीस
अज्झणं : पमायट्ठाणं
द्वात्रिंश अध्ययन : प्रमाद - स्थान
अच्चन्तकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो । तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता, सुणेह एगंतहियं हियत्थं ॥ १ ॥
अत्यन्त (अनन्त तथा अनादि ) काल के सभी दुःखों तथा उनके मूल कारणों से प्रमोक्ष (मुक्त) करने वाला है उसको मैं कहता हूँ, प्रतिपूर्ण ( पूरे मन से सुनो ; ( क्योंकि यह ) एकान्त (पूर्णरूप से) हित रूप है और कल्याण के लिए (कल्याणकारी) है ॥१॥
I express the subject which is capable to make free from the miseries of beginningless times and their causes. Listen with concentrated mind my dialect; because it exhaustively beneficial and benedictory (for you-your soul). (1)
नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अन्नाण- मोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥
सम्पूर्ण ज्ञान के प्रगट होने से, अज्ञान-मोह के विवर्जन (परिहार) से तथा राग और द्वेष के सर्वथा क्षय (नष्ट होने) से जीव एकान्त सुख रूप ( सुख स्थान ) मोक्ष को प्राप्त करता है ॥२॥
By manifestation of right knowledge (by which every thing is cognised), by avoidance of wrong-knowledge and exhaustive destruction of attachment and detachment; the soul obtains salvation which is the abode of eternal beatitude. (2)
तस्सेस मग्गो गुरु-विद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा । सज्झाय - एगन्तनिसेवणा य, सुत्तऽत्थसंचिन्तणया धिई य ॥ ३ ॥
उस (दुःखों से मुक्ति और सुख प्राप्ति) का यह मार्ग है - १. गुरुजनों और वृद्धों की सेवा शुश्रूषा करना, २. बाल (अज्ञानी) जनों से दूर रहना ३. स्वाध्याय तथा एकान्त सेवन, ४ सूत्र और उसके अर्थ का चिन्तन तथा धैर्य धारण किये रहना ॥३॥
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This (freedom from miseries and attaining happiness) is the way-(1) service of teachers and ageds (2) remaining far away from ignorant or wrong - faithed persons ( 3 ) study holy texts and to live in solitary places (4) pondering over the words and meanings of scriptures and to be ever constant. (3)
आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धिं । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥४॥
समाधि की कामना (इच्छा) करने वाला तपस्वी श्रमण परिमित और एषणीय आहार की इच्छा करे, अर्थ. (तत्व और अर्थ ) में निपुण बुद्धिवाले सहायक की इच्छा करे और स्त्री-पशु-नपुंसक से विविक्त-रहितएकान्त योग (विवेग-जोग्गं) स्थान में रहने की इच्छा करे ॥४॥
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