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४१३] एकत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
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पात्र आदि की भली-भाँति प्रतिलेखना करना (१४) क्षमा (१५) विरागता-लोभनिग्रह (१६) मन की शुभ प्रवृत्ति (१७) वचन की शुभ प्रवृत्ति (१८) काय की शुभ प्रवृत्ति (१९-२४) छह काय के जीवों की रक्षा (२५) संयम-योगयुक्तता (२६) वेदनाऽभिसहन-तितिक्षा अर्थात् शीत आदि से सम्बन्धित कष्टसहिष्णुता (२७) मारणान्तिकाऽभिसहन-मारणान्तिक कष्ट को भी समभाव से सहना। उक्त गण आचार्य हरिभद्र ने आवश्यक सूत्र की शिष्यहिता वृत्ति में बताये हैं। समवायांग सूत्र में कुछ भिन्नता है।
गाथा १८-अट्ठाईस आचार प्रकल्प-(आचारांग सूत्र के २५ अध्ययन तथा एवं निशीथ के तीन अध्ययन) गाथा १९-पापश्रुत के २९ भेद
(१) भौम-भूमिकम्प आदि का फल बताने वाला शास्त्र (२) उत्पात-रुधिर वृष्टि, दिशाओं का लाल होना इत्यादि का शुभाशुभ फल बताने वाला निमित्त शास्त्र (३) स्वप्नशास्त्र (४) अन्तरिक्ष-आकाश में होने वाले ग्रहवेध आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र (५) अंग शास्त्र-शरीर के स्पन्दन आदि का फल कहने वाला शास्त्र (६) स्वर शास्त्र (७) व्यंजन शास्त्र-तिल, मष आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र। (८) लक्षण शास्त्र-स्त्री पुरुषों के लक्षणों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र।
ये आठों ही, सूत्र, वृत्ति और उनकी वार्तिक के भेद से चौबीस शास्त्र हो जाते हैं।
(२५) विकथानुयोग-अर्थ और काम के उपायों को बताने वाले शास्त्र, जैसे वात्स्यायनकृत कामसूत्र आदि। (२६) विद्यानुयोग-रोहिणी आदि विद्याओं की सिद्धि के उपाय बताने वाले शास्त्र (२७) मन्त्रानुयोग-मन्त्र आदि के द्वारा कार्य सिद्धि बताने वाले शास्त्र (२८) योगानुयोग-वशीकरण आदि योग बताने वाले शास्त्र (२९) अन्यतीथिकानुयोग-अन्यतीर्थिकों द्वारा प्रवर्तित एवं अभिमत हिंसा प्रधान आचारशास्त्र। गाथा १९
महा मोहनीय के ३० स्थान। देखें दशाश्रुतस्कन्ध एवं समवायांग सूत्र। सिद्धों के ३१ अतिशायी गुण-देखें समयायांग ३१॥ . बत्तीस योग संग्रहमन, वचन, काया के प्रशस्त योगों का एकत्रीकरण योग संग्रह है।
१. गुरुजनों के पास दोषों की आलोचना करना। २. किसी के दोषों की आलोचना सुनकर अन्य के पास न कहना। ३. संकट पड़ने पर भी धर्म में दृढ़ रहना। ४. आसक्ति रहित तप करना। ५. सूत्रार्थग्रहणरूप ग्रहण शिक्षा एवं प्रतिलेखना आदिरूप आसेवना-आचार शिक्षा का अभ्यास करना। ६. शोभा-शृंगार नहीं करना। ७. पूजा प्रतिष्ठा का मोह त्याग कर अज्ञात तप करना। ८. लोभ का त्याग। ९. तितिक्षा। १०. आर्जव-सरलता। ११. शुचि-संयम एवं सत्य की पवित्रता। १२. सम्यक्त्व शुद्धि। १३. समाधि-प्रसन्नचित्तता। १४. आचार पालन में माया न करना। १५. विनय। १६. धैर्य। १७. संवेग-सांसारिक भोगों से भय अथवा मोक्षाभिलाषा। १८. माया न करना। १९. सदनुष्ठान। २०. संवर-पापानव को रोकना। २१. दोषों की शुद्धि करना। २२. काम भोगों से विरक्ति करना। २३. मूल गुणों का शुद्ध पालन। २४. उत्तर गुणों का शुद्ध पालन। २५. युत्सर्ग करना। २६. प्रमाद न करना। २७. प्रतिक्षण संयम यात्रा में सावधानी रखना। २८. शुभ ध्यान। २९. मारणान्तिक वेदना होने पर भी अधीर न होना) ३०. संग का परित्याग करना। ३१. प्रायश्चित्त ग्रहण करना। ३२. अन्त समय में लेखना करके आराधक बनना। (समवायांग ३२)
तेतीस आशातना-देखें दशाश्रुतस्कन्ध दशा ३ तथा समवायांग ३३ एवं श्रमण सूत्र-उपाध्याय श्री अमर मुनि।
Salient Elucidations
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Three punishments (dandas)-mind, speech and body indulged in ill-tendencies are | unishments. By these the glory of conduct insulted and soul is punished.
Three prides-(1) pride of wealth, (2) pride of tastes (3) pride of pleasures. Gaurava or glory is the deformed state of mind.
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