________________
४०७] एकत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ,
The mendicant, who bears the calamities caused by deities (gods), men and beasts with even-mind, he does not entangle in this world.. (5)
विगहा-कसाय-सन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा ।
जे भिक्खू वज्जई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥६॥ ___ जो भिक्षु चार प्रकार की विकथाओं, चार कषायों, चार संज्ञा और दो दुानों (आर्त रौद्र ध्यान) का सदा वर्जन-त्याग करता है, वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता-नहीं रहता ॥६॥
The mendicant who renounces four types of ill-tales, four passions, four types of expression of emotions (sañjā) and two sinful-cruel meditations, he does not remain in this world. (6)
वएसु इन्दियत्थेसु, समिईसु किरियासु य ।
जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥७॥ जो भिक्षु व्रतों (पाँच महाव्रतों) तथा पाँच समितियों के पालन में और पंचेन्द्रिय विषयों तथा (बन्धनकारी) क्रियाओं के परिहार में सदा यतनाशील रहता है, वह संसार में नहीं रहता ॥७॥
The mendicant who always remain careful in practising five great vows and circumspections and in renouncement of pleasures of five senses and activities which are causes of bondage, does not remain in this world. (7)
लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे ।
जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥८॥ जो भिक्षु छह प्रकार की लेश्याओं में, छह काया (पृथ्वी आदि छह काय के जीव) तथा आहार (ग्रहण करने न करने) के छह कारणों में सदा यतना का पालन करता है, वह संसार में नहीं रहता ॥८॥
The mendicant, who remains diligent in six types of tinges, protects six species, strenuous in six causes-to take and not to take food; he does not remain in this world. (8)
पिण्डोग्गहपडिमासु, भयहाणे सु सत्तसु ।
जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥९॥ जो भिक्षु (सात) पिण्ड (एषणाओं) (सात) अवग्रह प्रतिमाओं और सात भयस्थानों में सदा यतनाशील । (उपयोगयुक्त) रहता है, वह संसार में नहीं ठहरता-परिभ्रमण नहीं करता ॥९॥
The mendicant, who remains alert to seven rules of collecting food, seven rules of resolution to places for seeking alms and seven dangers-fears, he does not transmigrate in this world. (9)
मयेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खुधम्ममि दसविहे ।
जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥१०॥ जो भिक्षु (आठ) मदस्थानों में (नौ प्रकार की) ब्रह्मचर्य गुत्तियों में और दस प्रकार के भिक्षु धर्मों (श्रमणधर्मों) में सदा यतनाशील (उपयोगयुक्त) रहता है, वह संसार में नहीं रुकता ॥१०॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.hindibrary.org