________________
त्रिंश अध्ययन [४००
तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(३) गोमूत्रिका-वक्र अर्थात् टेढ़े-मेढ़े भ्रमण से मिक्षा लेना गोमूत्रिका है। जैसे चलते बैल के मूत्र की रेखा टेढ़ी-मेढ़ी होती है।
(४) पतंगवीथिका-पतंग जैसे उड़ता हुआ बीच में कहीं-कहीं चमकता है, इसी प्रकार बीच-बीच में घरों को छोड़ते हुए मिक्षा लेना।
(५) शम्बूकावर्ता-शंख के आवतों की तरह गाँव के बाहरी भाग से मिक्षा लेते हुए अन्दर में जाना अथवा गाँव के अन्दर से भिक्षा लेते हुए बाहर की ओर आना। शम्बूकावर्ता के ये दो प्रकार हैं।
(६) आयतंगत्वा प्रत्यागता-गाँव की सीधी सरल गली में अन्तिम घर तक जाकर फिर लौटते हुए भिक्षा लेना। इसके भी दो भेद हैं-जाते समय गली की एक पंक्ति से और आते समय दूसरी पंक्ति से भिक्षा लेना। अथवा एक ही पंक्ति से भिक्षा लेना, दूसरी पंक्ति से नहीं।
अद्भ |
गो-मूत्रिका
पेटा
अर्द्ध पेटा
गोमूमिका
- आयतं गत्व प्रत्याला ।
आयतं गत्वा-प्रत्यागता
-
शंबूकावर्ता -
पतंग-वीथिका
गाथा ३१-प्रायश्चित्त के १० भेद इस प्रकर हैं() आलोचनाई-गुरु के समक्ष अपने दोषों को प्रकट करना आलोचना है। (२) प्रतिक्रमणाह-कृत पापों से निवृत्त होने के लिये "मिच्छामि दुक्कड़" कहना। (३) तदुभयाह-पापनिवृत्ति के लिये आलोचना और प्रतिक्रमण-दोनों करना। (४) विवेकाई-लाये हुए अशुद्ध आहार आदि का परित्याग करना। (५) व्युत्सर्हि-चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के साथ कायोत्सर्ग करना। (६) तपार्ह-उपवास आदि तप करना। (७) छेदाह-संयम काल को छेद कर कम करना, दीक्षा काट देना। (८) मूलाई-फिर से महाव्रतों में आरोपित करना, नई दीक्षा देना। (९) अनवस्थापनार्ह-तपस्यापूर्वक नई दीक्षा देना।
(१०) पारंचिकाई-भयंकर दोष लगने पर काफी समय तक भर्त्सना एवं अवहेलना करने के अनन्तर नई दीक्षा देना। (स्थानांग-१०)
गाथा ३३-चयावृत्य तप के दस प्रकार है-(१) आचार्य (२) उपाध्याय (३) स्थविर-वृद्ध गुरुजन (४) तपस्वी (५) ग्लान-रोगी (६) शैक्ष--नवदीक्षित, (७) कुल-गच्छों का समुदाय (८) गण-कुलों का समुदाय (९) संघ-गणों का समुदाय (१०) साधर्मिक-समानधर्मा, साधु-साध्वी।
गाथा ३६-यहाँ व्युत्सर्ग तप में कायोत्सर्ग की ही गणना की है। प्रावरण एवं पात्र आदि उपधि का विसर्जन भी व्युत्सर्ग तप है। कषाय का व्युत्सर्ग भी व्युत्सर्ग तप में गिना गया है। काय मुख्य है। अतः काय के व्युत्सर्ग में सभी उत्सगों का समावेश हो जाता है।
Jain Education national
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org