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ain सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रिंश अध्ययन [३९४
जिसका जितना आहार है; उससे कम-से-कम (जघन्य) एक सिक्थ (एक कण अथवा एक ग्रास) कम भोजन करना, द्रव्य से अवमौदर्य-ऊनोदरी तप है ॥१५॥ To take even a morsel less than full meal is less eating penance by substance. (15)
गामे नगरे तह रायहाणि, निगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बड-दोणमुह, पट्टण-मडम्ब-संबाहे ॥१६॥ आसमपए विहारे, सन्निवेसे समाय-घोसे य । थलि-सेणाखन्धारे, सत्थे संवट्ट कोट्टे य ॥१७॥ वाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेतं ।
कप्पइ उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥१८॥ ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मडंब (मण्डप) संबाध-॥१६॥
आश्रम पद, विहार, सनिवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिविर, सार्थ, संवर्त, कोट-॥१७॥
वाड, रथ्या (गली) और घर-इन क्षेत्रों में तथा इस प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में निर्धारित (कल्पित) क्षेत्र प्रमाण के अनुसार भिक्षा के लिए जाना क्षेत्र से 'ऊनोदरी' तप होता है ॥१८॥
Village, scot-free town, capital, camp of merchants, mine, settlement of wild tribes or ordinary men, a place with clay-wall, poor town, town with harbour, large town, isolated town, open town-(16)
Hermitage, temple or living place of ascetics (vihara), halting place for processions, resting place for travellers, station for herdsmen, camp on high ground or camp of army, carvans camp, fortified place of refuge-(17)
Gardens, lanes, houses-these all are meant as place. A mendicant can wander in these and other such places for seeking alms according to his resolution of place. This is abstinence (less eating penance) regarding place. (18)
पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्ति पयंगवीहिया चेव ।
सम्बुक्कावट्टा 55 ययगन्तुं, पच्चागया छट्ठा ॥१९॥ अथवा (१) पेटा (२) अर्द्धपेटा (३) गोमूत्रिका (४) पतंगवीथिका (५) शम्बूकावर्ता और (६) आयतंगत्वा-(प्रत्यागता)-यह छह प्रकार का क्षेत्र से ऊनोदरी तप है ॥१९॥ ___And again these six kinds-(1) Peta (2) ardhapeta (3) gomutrika (4) patangavithika (5) śambūkāvartā and (6) āyataṁgatvā (pratyāgatā)-is abstinence or less eating penance with regard to place. (19)
दिवसस्स पोरुसीणं, चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे कालो ।
एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयव्वो ॥२०॥ दिन की चार पौरुषियों (प्रहरों) में से जितना काल (समय) (अभिग्रह रूप में) रखा हो, उसी काल (समय) में भिक्षा के लिए विचरण करना अवश्य ही काल संबंधी उनोदरी तप है, ऐसा जानना चाहिए ॥२०॥
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