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५] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पढमं अज्झयणं : विणय-सुयं प्रथम अध्ययन : विनय
-श्रुत
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो । विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे ॥१॥
जो सभी संयोगों (सांसारिक आसक्ति युक्त सम्बन्धों) से विप्रमुक्त - सर्वथा पृथक् है, गृहत्यागी अनगार है, (निर्दोष भिक्षा से जीवन यापन करने वाला) भिक्षु है; उसके विनय (अनुशासन एवं आचार) का मैं क्रमशः वर्णन करता हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनो ॥१॥
I shall describe the conduct, behaviour and discipline, in due order of one who is free from worldly ties, renouncer of domestic affairs (गृहत्यागी ) and mendicant ( भिक्षु ). Listen to me attentively. (1)
आणानिद्देसकरे, गुरुणमुववायकारए । इंगियागारसंपन्ने, से 'विणीए' त्ति वुच्चई ॥ २ ॥
गुरु की आज्ञा (आदेश) एवं निर्देश (संकेत) का पालन करने वाला, उनकी सेवा करने वाला, उनके समीप रहने वाला और उनके मनोभावों के अनुसार आचरण करने वाला बिनीत कहलाता है ॥२॥
One who responds to nods and motions of the preceptor (आचार्य), serves him and remains in his sight, called well-behaved and disciplined. (2)
आणाऽनिद्देसकरे,
गुरूणमणुववायकारए । डिणी असंबुद्धे, 'अविणीए' त्ति वुच्चई ॥३॥
जो गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करता है, उनसे दूर-दूर रहता है, उनके मनोभावों और संकेतों के प्रतिकूल कार्य करता है तथा जो असंबुद्ध-तत्त्व को नहीं जानता है, उसे अविनीत कहा जाता है ॥३॥
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One, who does not respond to nods and motions of the preceptor, remains out of his sight, disobey him, such unwise, called ill-behaved and indisciplined. (3)
जहा सुणी पूई - कण्णी, निक्कसिज्जई सव्वसो ।
एवं दुस्सील - पडिणीए, मुहरी निक्कसिज्जई ॥४॥
जिस प्रकार सड़े कानों वाली कुतिया ( घृणापूर्वक) सभी स्थानों से निकाल दी जाती है, उसी प्रकार गुरु प्रतिकूल आचरण करने वाला, दुःशील और वाचाल शिष्य भी सभी स्थानों से (तिरस्कृत करके) निकाल दिया जाता है ॥४॥
As a sore-eared bitch driven away hatefully from every place, so the ill-natured, alkative and perverse to the preceptor, such disciple also driven out disgracefully from everywhere. (4)
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