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३६१] एकोनत्रिंश अध्ययन
65. Subduing the sense of taste (tongue) 66. Subduing the sense of touch (body)
67. Conquering anger
68. Conquering pride
69. Conquering deceit
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
70. Conquering greed
71.
72.
73.
Conquering affection-aversionwrong belief Steadfastness like rock- stability Freedom from karmas
सूत्र २ - संवेगेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ । अणन्ताणुबन्धिकोह- माण- माया - लोभे खवेइ । नवं च कम्मं न बन्धइ । तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्त-विसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ । दंसणविसोहीए य णं विसुद्धा अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ । सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ ॥
सूत्र २ - ( प्रश्न ) भगवन् ! संवेग (मोक्षाभिरुचि - मोक्षाभिलाषा) से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
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(उत्तर) संवेग से जीव अनुत्तर धर्मश्रद्धा प्राप्त करता है। अनुत्तर धर्मश्रद्धा से संवेग शीघ्र ही आता है । अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षय करता है। नये कर्मों (मिथ्यात्व जनित कर्मों) का बन्ध नहीं होता। उस (अनन्तानुबन्धी कषाय-क्षय) के निमित्त से मिथ्यात्व विशुद्धि करके दर्शन का आराधक हो जाता है। दर्शन - विशुद्धि से विशुद्ध होकर कितने ही ( जिन्होंने उत्कृष्ट दर्शन-विशुद्धि की है। जीव उसी भव (जन्म) से सिद्ध हो जाते हैं और कितने ही जीव दर्शन-विशुद्धि से विशुद्धि होने पर तीसरे जन्म का अतिक्रमण नहीं करते । (तीसरे जन्म में तो निश्चित ही सिद्ध हो जाते हैं)।
Maxim 2. (Q). Reverend sir (Bhagawan ) ! What does the soul attain by longing for salvation?
(A). By longing for salvation soul obtains extreme faith in religion. By extreme faith he acquires longing for liberation quickly. He destroys beginningless-bound anger, pride, deceit-greed. He does not bind new karmas, which are produced by wrong belief. By destructing infinitely-bound karmas, purifying the wrong belief, he becomes the practiser of right-faith. Purified by the purification of faith many souls (who extremely purified the faith) become liberated by the same birth and many souls becoming purified by faith-purification, do not cross third life, meaning they definitely obtain salvation by third birth.
सूत्र ३ - निव्वेएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
निव्वे एणं दिव्व- माणुस - तेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ । सव्वविस सु विरज्जइ । सव्वविसएस विरज्जमाणे आरम्भ - परिच्चायं करेइ । आरम्भपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिन्दइ, सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ ॥
सूत्र ३ - ( प्रश्न) भगवन् ! निर्वेद (भव वैराग्य) से जीव को क्या प्राप्ति होती है ?
(उत्तर) निर्वेद से जीव देव- मनुष्य- तिर्यंच सम्बन्धी कामभोगों से शीघ्र वैराग्य - विरक्ति (निर्वेद) को प्राप्त करता है। सभी प्रकार के विषयों से विरक्त होता है। सभी विषयों से विरक्त होकर आरम्भ का परित्याग करता है। आरम्भ का परित्याग करता हुआ संसार-मार्ग का विच्छेद करता है तथा सिद्धि-मार्ग को प्राप्त
करता है।
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