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३३५] षड्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं ।
राइयं तु अईयारं, आलोएज्ज जहक्कमं ॥४९॥ कायोत्सर्ग को पूर्ण करके फिर गुरु को वन्दना कर रात्रि-सम्बन्धी अतिचारों की अनुक्रम से आलोचना करे ॥४९॥
Completing Kayotsarga and paying respect to teacher, criticize the transgressions comitted during night, in due order. (49)
पडिक्कमित्तु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं ।
काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥५०॥ इसके पश्चात् प्रतिक्रमण करके, शल्यरहित होकर, गुरु को वन्दना करके सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे ॥५०॥
After it, observing exculpation, becoming free from internal thorns, paying respect to teacher, observe Kayotsarga which is the destructor of all pains. (50)
किं तवं पडिवज्जामि, एवं तत्थ विचिन्तए ।
काउस्सग्गं तु पारित्ता, वन्दई य तओ गुरुं ॥५१॥ उस कायोत्सर्ग में चिन्तन करे कि आज मैं किस तप का आचरण करूँ ? कायोत्सर्ग को पारित कर गुरु को वन्दन करे ॥५१॥
During that Kayotsarga, ponder that what penance should I observe today. Completing Kāyotsarga pay respect to teacher. (51)
पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं ।
तवं संपडिवज्जेत्ता, करेज्ज सिद्धाण संथवं ॥५२॥ कायोत्सर्ग पूरा होने पर गुरु को वन्दना करे। उसके उपरान्त यथोचित तप को स्वीकार कर सिद्धों की स्तुति-संस्तव करे ॥५२॥
On completion of Kayotsarga, pay respect to teacher. After that accepting the proper penance, sing the praise of perfected souls. (52)
एसा सामायारी, समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥५३॥
-त्ति बेमि । यह सामाचारी संक्षेप में कही गई है। इसका आचरण कर बहुत से जीव संसार-सागर को तैर गये हैं ॥५३॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। This sāmācāri is described in short. Practising it many souls crossed worldly ocean.
-Such I speak.
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