________________
३३३] षड्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पौरुषी के चतुर्थ भाग में गुरु को वन्दना करके काल का प्रतिक्रमण (कायोत्सर्ग) कर शैया का प्रतिलेखन करे ॥३८॥
In the last quarter of fourth pauriși of day and observing exculpation of time, inspect the bed. (38)
पासवणुच्चारभूमिं च, पडिलेहिज्ज जयं जई ।
काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥३९॥ दैवसिक प्रतिक्रमण ___ यतनाशील यति प्रसवण और उच्चार भूमि का प्रतिलेखन करे। तदुपरान्त सर्व दुःखों का अन्त करने वाला कायोत्सर्ग करे ॥३९॥
A zealous monk should inspect the spot where the excreta and urine he has to discharge and then go through meditation which ends all pains. (39)
देसियं च अईयारं, चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो ।
नाणे य दंसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य ॥४०॥ (कायोत्सर्ग में) ज्ञान-दर्शन-चारित्र में लगे दिवस-सम्बन्धी अतिचारों का चिन्तन करे ॥४०॥
During meditation-Kayotsarga he should reflect the transgressions committed in the day pertaining to knowledge-faith-conduct respectively. (40)
पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं ।
देसियं तु अईयारं, आलोएज्ज जहक्कमं ॥४१॥ कायोत्सर्ग को पूर्ण कर गुरु को वन्दन करे। तदुपरान्त दिवस सम्बन्धी अतिचारों की अनुक्रम से आलोचना करे ॥४१॥
Completing the Kāyotsarga meditation, bow down to teacher. Then criticize the transgressions of day respectively. (41)
पडिक्कमित्तु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं ।
__ काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४२॥ प्रतिक्रमण करके, शल्यरहित होकर गुरु को वन्दन करे तत्पश्चात सभी दुःखों से मुक्त कराने वाला कायोत्सर्ग करे ॥४२॥
Observing expiation, becoming free from internal thorns, pay respect to teacher and observe Käyotsarga meditation which is annihilator of all miseries. (42)
पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं ।
थुइमंगलं च काउण, कालं संपडिलेहए ॥४३॥ कायोत्सर्ग को पारित (पूर्ण) करके फिर गुरु को वन्दन करे तथा स्तुति-मंगल (सिद्धस्तव) करके काल
की सम्यक् प्रकार से प्रतिलेखना करे ॥४३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jaing brey.org