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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंश अध्ययन [३१८
समभाव रखने से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य का पालन करने से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप करने से तपस्वी होता है ॥३२॥
One becomes a sage by equanimity, Brāhmaṇa by celibacy, monk by knowledge and penancer by austerities. (32)
कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ ।
वइस्से कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मणा ॥३३॥ कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है ॥३३॥ By activities one becomes Brāhmana, Vaisya, Ksatriya and Sudra (33)
एए पाउकरे बुद्धे, जेहिं होइ सिणायओ ।
सव्वकम्मविनिम्मुक्कं, तं वयं बूम माहणं ॥३४॥ इन तत्त्वों का प्ररूपण अर्हत् ने किया है। इनके द्वारा जो साधक स्नातक-पूर्ण होता है, सर्व कर्मों से मुक्त-विनिमुक्त होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥३४॥
Enlighteneds (Arhatas) declared these virtues. By pursuing these the adept who makes him perfect, he becomes free from all karma-bondages; we call him a Brāhmana. (34)
एवं गुणसमाउत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा ।
ते समत्था उ उद्धत्तुं, परं अप्पाणमेव य ॥३५॥ जो गुण-सम्पन्न द्विजोत्तम-उत्तम ब्राह्मण होते हैं, वे ही अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ होते हैं ॥३५॥ The virtuous twice-bom-excellent Brāhmanas are capable to save themselves and others. (35)
एवं तु संसए छिन्ने, विजयघोसे य माहणे ।
समुदाय तयं तं तु, जयघोसं महामुणिं ॥३६॥ इस तरह संशय दूर हो जाने पर विजयघोष ब्राह्मण ने महामुनि जयघोष के वचनों को सम्यक्रूप से स्वीकार किया ॥३६॥
When all the doubts removed, Brahmana Vijayaghosa accepted the words of sage Jayaghosa thoroughly. (36)
तुढे य विजयघोसे, इणमुदाहु कयंजली ।
माहणत्तं जहाभूयं, सुठु मे उवदंसियं ॥३७॥ संतुष्ट हुए विजयघोष ने हाथ जोड़कर इस प्रकार कहा--आपने मुझे यथार्थ ब्राह्मणत्व का बहुत ही सुन्दर उपदेश दिया है ॥३७॥
Satisfied Vijayaghosa uttered with folded hands-You hve bestowed me the beautiful
precept about the real Brahamana. (37) Jain Adultion International For Private & Personal Use Only
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