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तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंश अध्ययन |३१०
पच्चीसवाँ अध्ययन : यज्ञीय
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पूर्वालोक
प्रस्तुत अध्ययन का नाम यज्ञीय है। इस अध्ययन में प्रमुख रूप से यज्ञों का वर्णन हुआ है।
भारत में ब्राह्मण अथवा वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव ही बहुदेववाद तथा यज्ञों से हुआ है। अग्नि, यम, वरुण आदि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तथा अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए यज्ञ किये जाते थे। पुत्रकामो यजेत, स्वर्गकामो यजेत आदि वैदिक परम्परानुयायी ऋषियों और ब्राह्मणों के उद्घोष थे। ___भगवान महावीर के काल में इन यज्ञों का बोलवाला था। विशाल यज्ञ किये जाते थे और उनमें सैकड़ों हजारों मूक पशुओं को जीवित ही अग्नि की ज्वालाओं में स्वाहा कर दिया जाता था। ब्राह्मण यायाजी (यज्ञकर्ता) होने में गौरव अनुभव करते थे। ___ ऐसे ही यायाजी दो भाई वाणारसी में रहते थे। उनके नाम जयघोष तथा विजयघोष थे। दोनों भाई वेदों के विद्वान और यज्ञों के ज्ञाता-याज्ञिक थे। ___ एक वार जयघोष गंगा नदी में स्नान करने गया। गंगातट पर उसने बड़ा ही बीभत्स और कारुणिक दृश्य देखा। एक सर्प ने मुँह में एक मेढ़क को दबा रखा था, वह उसे निगलने की चेष्टा कर रहा था; और उस सर्प को एक कुरर पक्षी निगलने की चेष्टा में रत था। ज्यों-ज्यों कुरर सर्प को निगलता त्यों-त्यों सर्प के दवाब से मेढ़क की पीड़ा बढ़ती जाती, वह बुरी तरह तड़पता।
इस बीभत्स दृश्य से जयघोष के हृदय में करुणा की तरंगें तरंगित हो उठीं, उसे हिंसा से ग्लानि हो गई। साथ ही संसार में बड़ा जीव छोटे जीव का भोजन करता है, इस दृश्य से उसका मन उद्विग्न हो उठा। उसने किसी जैन श्रमण के पास जाकर श्रामणी दीक्षा ग्रहण करली। उग्र तप करने लगा। दीर्घकालीन तपस्या से उसका शरीर अत्यन्त कृश हो गया।
ग्रामानग्राम विहार करते हए जयघोष मनि पनः वाराणसी पधारे। उस समय विजयघोष एक विशाल यज्ञ कर रहा था। मासोपवासी मुनि भिक्षा हेतु उसकी यज्ञशाला में पहुँचे। विजयघोष उन्हें न पहचान सका और भिक्षा देने से साफ इन्कार कर दिया।
भिक्षा न मिलने से समभावी मुनि जयघोष को कोई विषाद नहीं हुआ; किन्तु विजयघोष को प्रतिबोध देने हेतु उससे पूछा-यज्ञ, नक्षत्र, धर्म का मुख क्या है ? विजयघोष इन प्रश्नों का उत्तर न दे सका। तब जयघोष मुनि ने इनका यथार्थ स्वरूप बताया तथा ब्राह्मण आदि का स्वरूप भी बताया। मुनि, श्रमण, ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्गों का कारण तथा स्वरूप कहा। ___ तदनन्तर उसे कर्मबन्धन से दूर रहने की प्रेरणा दी। वह भी प्रतिबुद्ध होकर श्रमण बन गया तथा जयघोष-विजयघोष-दोनों संयम साधना करके मुक्त हुए।
. प्रस्तुत अध्ययन में यज्ञ, ब्राह्मण आदि का स्वरूप आध्यात्मिक दृष्टि से वर्णित हुआ है, यही इसकी विशेषता है।
भगवान महावीर की तत्कालीन वाणी का प्रतिघोष इस अध्ययन में मुखरित हुआ है। इस अध्ययन में ४५ गाथाएँ हैं।
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