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३०९] चतुर्विश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
ये पाँच समितियाँ चारित्र में प्रवृत्ति के लिए और तीन गुप्तियां सभी अशुभ अर्थों-भावों-विषयों से सर्वथा निवृत्ति के लिए कही गई हैं ॥२६॥
These vigilences are helpful for right conduct and restraints prevents all the inauspicious thoughts and vices. (26)
एया पवयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी । से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए ॥२७॥
-त्ति बेमि । जो पण्डित (तत्ववेत्ता) मुनि इन प्रवचनमाताओं का सम्यक् रूप से आचरण करता है वह समस्त संसार से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है ॥२७॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Who practises these mothers of religious order (Pravacana-mātā) he soon becomes liberated from this world. (27)
-Such I speak.
विशेष स्पष्टीकरण गाथा ३-यहाँ पाँच समिति और तीन गुप्ति-इन आठों को ही समिति कहा है। प्रश्न है, ऐसा क्यों? शांत्याचार्य ने समाधान प्रस्तुत किया है कि गुप्तियाँ एकान्त निवृत्तिरूप ही नहीं, प्रवृत्तिरूप भी होती हैं, अतः प्रवृत्ति अंश की अपेक्षा से उन्हें भी समिति कह दिया है। समिति में नियमतः गुप्ति होती है, क्योंकि उसमें शुभ में प्रवृत्ति के साथ जो अशुभ से निवृत्तिरूप अंश है, वह नियमतः गुप्ति अंश ही है। गुप्ति में प्रवृत्तिप्रधान समिति की भजना है । (बृहद्वृत्ति)
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Salient Elucidatons
Gathā 3-Here the five vigilences and three restraints together called eight vigilences. Question is, why it is so ? Santyācārya presented the pacification that restraints are not only preventive but also are active, therefore these also called vigilence. In vigilence the restraint also exists, because in vigilence activity towards auspicious on the other side denotes the prevention of inauspicious, this prevention is restraint; but in restraint the vigilence may or may not exist.
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