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________________ 34 चित्रों का विवरण युक्त परिचय ५२ २३ ५३ २३ 9. भगवान पार्श्वनाथ तथा भगवान महावीर के शिष्य जब परस्पर मिले तो एक-दूसरे से पूछने लगेहम में यह भेद क्यों ? ( गाथा ११-१२) (२) श्रावस्ती के उद्यान में केशीकुमार श्रमण तथा इन्द्रभूति गौतम ने अपने शिष्य परिवार के साथ बैठ मिलकर परस्पर विचार चर्चा की। हजारों मनुष्य तथा देव- गंधर्व भी कुतूहलवश यह सन्त समागम देखने आये । (गा. १४-२० ) ५५.२८ २. केशीकुमार श्रमण के विभिन्न प्रश्नों का उत्तर देते हुए गणधर गौतम ने बताया १. मैं कषायों की अग्नि को श्रुत-शील और तप के जल से शान्त कर लेता हूँ। (गा. ५३) २. मनरूपी दुष्ट अश्व को ज्ञान की लगाम से वश में कर लेता हूँ। (गा. ५६) ३. ज़रा-मरण रूपी जल प्रवाह में धर्म ही एक द्वीप है। (गा. ६८ ) ४. शरीर रूपी नौका से संसार समुद्र को महर्षि जन तैर जाते हैं। (गा. ७३) ५. गहन अंधकार में ज्ञान रूपी भास्कर (भगवान) उदित हो चुका है। ५४ २५ गंगा स्नान करते हुए जयघोष ने देखा - मेंढक को सर्प और सर्प को कुरर पक्षी निगल रहा है। वैराग्य पाकर जयघोष मुनि बन गये । भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयघोष के यज्ञ मण्डप में पहुँचने पर तत्व बताते हुए जयघोष मुनि ने कहा- कोई सिर मुंडाने मात्र से श्रमण, ॐकार जपने मात्र से ब्राह्मण, और कुश-चीवर धारण करने मात्र से तापस नहीं होता । (गा. ३१) २८. सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र तप के सम्मिलित मार्ग पर आरूढ़ आत्मा सद्गति को प्राप्त करता हुआ क्रमशः मोक्ष गति को प्राप्त कर लेता है। (गा. ३) ५६ ३२ (१) रूप में आसक्त पतंगा, (२) शब्द में आसक्त मुग्ध हरिण, (३) गंध में आसक्त सर्प और (४) रस में आसक्त मत्स्य जिस प्रकार विनाश को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार इन विषयों में आसक्त अज्ञानी प्राणी दुःखी होता है। ( गाथा २४, ३७, ५०, ६३ ) ५७ ३२ (१) शीतल जल का लोभी भैंसा, (२) और हथिनी के मोह में अन्धा हाथी - रागभाव के कारण विनाश को प्राप्त होते हैं। (गाथा ७६, ७९ ) तथा जल में कमल की भाँति निर्लेप वीतराग पुरुष सदा शान्त एवं प्रसन्न रहते हैं। ( गाथा ९९ ) • लेश्या - परिणामों की तर-तमता का दृष्टान्त ५८ ३४ संक्लिष्ट क्रूरतम भावना वाला कृष्ण लेश्यी व्यक्ति फल के लिए वृक्ष को जड़मूल से काटने वाले के समान है। फिर उससे कुछ कम क्लिष्ट परिणाम वाला व्यक्ति क्रमशः शाखा काटने वाले (नीललेश्यी) टहनी काटने वाले (कापोतलेश्यी) कच्चे-पके फल मात्र तोड़ने वाले (तेजोलेश्यी) तथा सिर्फ पके फल तोड़ने वाले कोमल परिणामी (पद्म लेश्यी) एवं आवश्यकतानुसार मात्र पके फल बीनने वाले कोमलतम भद्र परिणामी (शुक्ल लेश्यी) के प्रतीक हैं। (टीका अनुसार) ५९ ३४ इस चित्र में प्रस्तुत सूत्रानुसार छहों लेश्याओं के वर्ण, रस, गंध, स्पर्श और भाव (लक्षण) को उदाहरणों के माध्यम से समझाया गया है। स्पष्टीकरण हेतु गाथा ४ से ३० तक का भाव देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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