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________________ चित्रों का विवरण युक्त परिचय 33 ४१ १८ क्षत्रिय मुनि ने संजय राजर्षि को बताया- भगवान महावीर ने कहा है, जो मनुष्य, चोरी, हिंसा, मद्य सेवन आदि पाप कर्म करते हैं वे घोर नरक में जाते हैं। ध्यान, दान आदि धर्म का आचरण करने वाले दिव्य गति को प्राप्त करते हैं। ( गाथा २५ ) ४२ १९ राज महलों के गवाक्ष में खड़ा मृगापुत्र राजपथ पर नगर की हलचलें देख रहा था कि एक तपस्वी संयमी श्रमण को आते हुए अनिमेष निहारने लगा। वह विचारों में गहरा खो गया तो उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। पूर्व जन्म में आचरित मुनिधर्म का वह साक्षात् अनुभव करने लगा। ४३ १९ (१) जातिस्मरण से जागृत मृगापुत्र माता-पिता के पास संयम की अनुमति लेने ( गाथा १-९ ) आया। वह बोला- जिस प्रकार आग में जलते हुए घर से गृहस्वामी अपनी मूल्यवान वस्तु निकाल लेता है, उसी प्रकार मैं कषायों की अग्नि में जलती हुई अपनी आत्मा को निकालना चाहता हूँ। ( गाथा २३-२४) (२) माता-पिता ने कहा- जैसे प्रज्वलित अग्नि शिखा को पीना, समुद्र को तैरना, मेरू पर्वत को तराजू में तोलना और तलवार की धार पर चलना कठिन है, वैसे ही संयम का आचरण अति दुष्कर है। ( गाथा ४०-४३/३८) 8: ४४ १९ मृगापुत्र द्वारा नरक वेदनाओं का वर्णन गाथा ५०, ५१, ५२, ५३, ५४, ५५ के अनुसार है। ४५ १९ मृगापुत्र द्वारा नरक वेदनाओं का वर्णन - गाथा ५७, ५८, ५९, ६०, ६१, ६३, ४६ १९ मृगापुत्र द्वारा नरक वेदनाओं का वर्णन गाथा ६४, ६७, ६९, ७०, ७१, ५६ के ४७ २० राजगृह के बाहर मण्डिकुक्षि उद्यान में राजा श्रेणिक ने वृक्ष एवं लताओं से अनुसार है। अनुसार है। आकीर्ण एक लता मण्डप में मुनि को ध्यान करते हुए देखा। ध्यान समाप्त होने पर राजा ने मुनि से अनेक प्रश्न पूछे। मुनि ने बताया, 'मैं अनाथ हूँ' तो राजा जोर से हँसने लगा। (गाथा १ - ९ तक) २० मुनि ने अपनी आत्मकथा सुनाई - मैं कोशाम्बी के ईभ्य सेठ का पुत्र हूँ। एक बार मेरी आँखों में तीव्र वेदना हुई, परन्तु पानी की तरह धन बहाने एवं अनेक उपचार करने पर भी पीड़ा शान्त नहीं हुई। तब आत्म-चिन्तन करते हुए मैंने संकल्प किया-यदि मैं इस वेदना से मुक्त हो जाऊं, तो संसार त्याग कर श्रमण बन जाऊँगा। मेरी वेदना शान्त हो गई और मैंने घर-परिवार का त्याग कर दिया । (गाथा १९-३४) ম ९ २१ पालित सेठ की पत्नी ने समुद्र यात्रा में ही पुत्र को जन्म दिया। जिस कारण उसका नाम समुद्रपाल रखा। एक बार समुद्रपाल ने राजमार्ग पर एक अपराधी को लाल कपड़े और गले में लाल कणेर की माला पहने वध्र्यभूमि की ओर ले जाते देखा । एकाग्र चिन्तन करते हुए उसे पूर्व जन्म की स्मृति हुई तो जाना, मनुष्य को अच्छे कर्मों से स्वर्ग और बुरे कर्मों से नरक मिलता है। (गाथा ४ - ९ ) २२ (१) विवाह मण्डप की ओर बढ़ते हुए राजकुमार अरिष्टनेमि ने बाड़े में बन्द पशु-पक्षियों की करुण चीत्कार सुनी तो हृदय द्रवित हो उठा। सारथि (महावत ) से पूछने पर पता चला कि ये सब आपके विवाह भोज के लिए बन्द है (२) अरिष्टनेमि का हृदय करुणा-विगलित हो गया। सारथि को अपने कुण्डल आदि पुरस्कार में देते हुए आज्ञा दी, समस्त पशु-पक्षियों को तत्काल मुक्त कर दिया जाय । ( गाथा १४-२० ) ३२ (१) विरक्तमना अरिष्टनेमि प्रव्रजित हो गये। वसुदेव, समुद्रविजय, बलभद्र एवं वासुदेव श्री कृष्ण ने उन्हें वन्दना की। (२) तौरण द्वार से लौटकर प्रव्रजित होने की सूचना मिलते ही दुल्हन बनी राजीमती मूर्च्छित हो गई। (गाथा २५-२८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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