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२९९] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
O monk ! What place you suppose safe, quiet and happy for the beings tormented by mental and bodily miseries. (80)
अत्थि एगं धुवं ठाणं, लोगग्गंमि दुरारुहं ।
जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ॥८१॥ (गौतम) लोक के अग्र भाग में एक ध्रुव-शाश्वत स्थान है; जहाँ जरा, मृत्यु, व्याधियाँ तथा वेदनाएँ नहीं हैं किन्तु उस स्थान पर पहुँचना दुष्कर है ॥८१॥
(Gautama) In the highest part of upper world there is an eternal place; where old age, death, diseases, pains do not exist; but it is very difficult to reach that place. (81)
ठाणे य इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममबब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥८२॥ (केशी) वह स्थान कौन-सा है ? केशी ने गौतम से पूछा। केशी के पूछने पर गौतम ने यह कहा-॥८२॥ (Kesi) Kesi asked-which is that place? Gautama answered-(82)
निव्वाणं ति अबाहं ति, सिद्धी लोगग्गमेव य ।
- खेमं सिवं अणाबाहं, जं चरन्ति महेसिणो ॥८॥ (गौतम) जिस स्थान को महर्षि प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है; क्षेम, शिव और अनाबाध है ॥८३॥
(Gautama) The great sages obtain, that place is salvation, without any hindrance, emancipation, uppermost part of Loka, safe, and obstacleless. (83)
तं ठाणं सासयं वासं, लोगग्गंमि दुरारुहं ।
जं संपत्ता न सोयन्ति, भवोहन्तकरा मुणी ॥८४॥ भव-प्रवाह (जन्म-मरण) का अन्त करने वाले मुनि जिसे संप्राप्त करके शोक से मुक्त हो जाते हैं, वह स्थान लोक के अग्रभाग में शाश्वत निवास स्थान है; किन्तु वहाँ पहुँचना दुष्कर है ॥८४॥
Ending the circle of births and deaths, the great sage approaching that place becomes free from all miseries, that place is eternal; but to reach there is difficult. (84)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो ।
नमो ते संसयाईय, सव्वसुत्तमहोयही ! ॥८५॥ (केशी) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। मेरा यह संशय भी नष्ट हो गया। हे संशयातीत! सर्वश्रुत के महासागर ! तुम्हें मेरा नमस्कार है ॥८५॥
(Kesi) Gautama ! Your wisdom is best, you removed my this suspicion. O Doubtless, Ocean of whole śruta, I bow to you. (85)
एवं तु संसए छिन्ने, केसी घोरपरक्कमे । अभिवन्दित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥८६॥
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