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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [२८४
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तेविंसइमं अज्झयणं: केसिगोयमिज्ज त्रयोविंश अध्ययन : केशि-गौतमीय
जिणे पासे ति नामेण, अरहा लोगपूइओ ।
संबुद्धप्पा य सव्वन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे ॥१॥ राग-द्वेष आदि आन्तरिक रिपुओं के विजेता, पार्श्व नाम के लोकपूजित अर्हन् जिन स्वतः सम्बुद्ध, सर्वज्ञ, वीतराग और धर्मतीर्थ के प्रवर्तक थे ॥१॥
There was a Jina, named Pārśva, conqueror of all internal enemies, revered by all, enlightened himself, omniscient and prophet of religion. (1)
तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे ।
केसीकुमार - समणे, विज्जा-चरण - पारगे ॥२॥ ___ उन लोकप्रदीप भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशी कुमारश्रमण ज्ञान और चारित्र (विज्जाचरण) के पारगामी थे ॥२॥
His disciple was Keśī Kumāraśramana, who has mastered the right knowledge and conduct. (2)
ओहिनाण-सुए बुद्धे, सीससंघ - समाउले ।
गामाणुगामं रीयन्ते, सावत्थिं नगरिमागए ॥३॥ वे अवधिज्ञान और श्रुतज्ञान से प्रबुद्ध (पदार्थों के स्वरूप के ज्ञाता) थे। अपने शिष्य संघ के साथ विहार करते हुए वे श्रावस्ती नगरी में आये ॥३॥ ___He was efficient with clairvoyance (अवधिज्ञान) and Sruta-knowledge. He came to city Sravasti with his disciples. (3)
तिन्दुयं नाम उज्जाणं, तम्मी नगरमण्डले ।
फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥४॥ नगरी के समीप तिन्दुक नाम का उद्यान था। वहाँ प्रासुक (निर्दोष) शय्या-संस्तारक उपलब्ध था, अतः वहाँ ठहर गये ॥४॥
Near that city there was a park named Tinduka, he stayed in that park taking pure place for residing. (4)
अह तेणेव कालेणं, धम्मत्थियरे जिणे ।
भगवं वद्धमाणो त्ति, सव्वलोगम्मि विस्सुए ॥५॥ उसी समय धर्मतीर्थ के प्रवर्तक, जिन, भगवान वर्द्धमान; जो सम्पूर्ण लोक में पूजित और विश्रुत | थे ॥५॥
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