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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र त्रयोविंश अध्ययन २८२ ॥ तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय । पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम केशी-गौतमीय है। कुमारश्रमण केशी भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के चतुर्थ पट्टधर थे और गौतम गणधर भगवान महावीर के पट्टशिष्य थे। दोनों ही प्रकाण्ड विद्वान और विशिष्ट ज्ञानी थे। श्रावस्ती नगरी के तिन्दुक उद्यान में दोनों में जो तत्व चर्चा हुई उसका इस अध्ययन में रोचक व प्रेरक वर्णन है। ___ केशी कुमारश्रमण अपने संघ सहित, तिन्दुक उद्यान में ठहरे और गौतम गणधर अपने संघ सहित कोष्ठक उद्यान में ठहरे। ____दोनों के शिष्य जब गोचरी आदि के लिए जाते तो परस्पर मिलते, विचार-विमर्श भी करते लेकिन दोनों के आचार में भेद होने के कारण दोनों के ही साधु संशय में पड़ गये। अपने-अपने गुरुओं से कहा-जब हमारा लक्ष्य एक है, मुक्ति-प्राप्ति है तो फिर यह भेद किस लिए है ? दोनों ने मिलकर इन भेदों को स्पष्ट करने का निर्णय किया। अपने से ज्येष्ठ मानकर विनय मर्यादा का पालन करते हुए गौतम गणधर अपने संघ सहित तिन्दुक उद्यान में पहुँचे। केशी कुमारश्रमण ने उनका यथोचित आदर किया और योग्य आसन दिया। केशी कुमारश्रमण ने सचेल-अचेल, वेश-भूषा, चातुर्याम, पंचमहाव्रत आदि के संबंध में प्रश्न किये। __गौतम स्वामी ने बताया-वेश आदि तो लोक-प्रतीति आदि के लिए हैं; मुक्ति के वास्तविक कारण तो ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप हैं; जिसके विषय में दोनों ही एकमत हैं। चातुर्याम तथा पंचमहाव्रत के विषय में बताया कि प्रथम तीर्थंकर के साधु ऋजुजड़ होते हैं और मध्यम २२ तीर्थंकरों के शिष्य ऋजुप्राज्ञ होते हैं; वे जल्दी ही सरलता पूर्वक तत्व को समझकर तदनुसार आचरण कर लेते हैं; लेकिन अन्तिम तीर्थंकर के शिष्य वक्रजड़ होते हैं। इसलिये भगवान महावीर ने नियमोपनियमों में युग के अनुरूप व्यावहारिक परिवर्तन किये हैं। इसके उपरान्त केशी कुमारश्रमण द्वारा प्रस्तुत किये गये शत्रुओं, बन्धनों, लता, दुष्ट अश्व, मार्ग-कुमार्ग, महाद्वीप आदि प्रतीकात्मक प्रश्नों का भी गौतम स्वामी ने समुचित समाधान दिया। केशी कुमारश्रमण के सभी प्रश्न समाहित हो गये और उन्होंने अपने संघ सहित पंच महाव्रत धर्म स्वीकार किया तथा भगवान महावीर के संघ में सम्मिलित हो गये। ___इस अध्ययन की सर्वाधिक शक्तिशाली प्रेरणा यह है कि जिज्ञासाओं और संशयों का निर्णय वार्तालाप द्वारा उदार बुद्धि से किया जाना चाहिए। दूसरी विशेषता यह है कि मूल को ज्यों की त्यों रखते हुए देश-काल की परिस्थितियों के अनुसार बाह्य परिवर्तनों को स्वीकार करने से धर्म में जीवन्तता बनी रहती है। प्रस्तुत अध्ययन में ८९ गाथाएँ हैं। Jain www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only ducation International
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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