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________________ द्वाविंश अध्ययन [२८० in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ । सामण्णं निच्चलं फासे, जावज्जीवं दढव्वओ ॥४९॥ वह (रथनेमि) मन, वचन, काया से गुप्त और जितेन्द्रिय हो गया। दृढव्रती बनकर जीवन भर निश्चल रूप से श्रामण्य का पालन करता रहा ॥४९॥ Rathanemi became protected mind, speech and body and conqueror of senses. Becoming firm in vows practised sagehood till life. (49) उग्गं तवं चरित्ताणं, जाया दोण्णि वि केवली । सव्वं कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥५०॥ उग्र तप का आचरण करके दोनों (रथनेमि और राजीमती) ने ही कैवल्य प्राप्त किया और सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके अनुत्तर सिद्ध गति को प्राप्त हुए ॥५०॥ Practising severe penances both (Rājimati and Rathanemi) became omniscient and destructing all the karmas attained liberation. (50) एवं करेन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा | विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो ॥५१॥ -त्ति बेमि । सम्बुद्ध, तत्त्ववेत्ता पण्डित और विचक्षण व्यक्ति ऐसा ही करते हैं। पुरुषों में उत्तम रथनेमि के समान वे भोगों से निवृत्त हो जाते हैं। ___ -ऐसा मैं कहता हूँ। Enlightened, wise, witty persons do like this. Like the noble man Rathanemi they tum from pleasures and amusements. (51) -Such I speak. विशेष स्पष्टीकरण गाथा ५-लक्षण-प्रवचनसारोद्धार वृत्ति (पत्र ४१०-११) में बताया गया है कि "शरीर के साथ उत्पन्न होने वाले छत्र, चक्र, अंकुश आदि रेखाजन्य चिह्न लक्षण कहे जाते हैं। साधारण मनुष्यों के शरीर में ३२, बलदेव-वासुदेव के १०८ और चक्रवर्ती तथा तीर्थंकर के शरीर पर १००८ शुभ लक्षण होते हैं।" गुरुजनों के नाम से पूर्व १०८ या १००८ श्री का प्रयोग इन्हीं लक्षणों का सूचक है। गाथा ६-संहनन का अर्थ है-बन्धन-हड्डियों के बन्धन। शरीर के सन्धि अंगों की दोनों हड्डियाँ परस्पर आंटी लगाये हुए हों, उन पर तीसरी हड्डी का वेष्टन-लपेट हो, और चौथी हड्डी की कील उन तीनों को भेद रही वज्र जैसा सढ़ अस्थिबन्धन "वज्र-ऋषभ-नाराच" संहनन है। संहनन के छह प्रकार हैं। संस्थान-शरीर की आकृति को संस्थान कहते हैं। (प्रज्ञापना २३/२) पालथी मार कर बैठने पर जिस व्यक्ति के चारों कोण सम हों, वह "समचतुरम्" नामक सर्वश्रेष्ठ संस्थान है। संस्थान के छह प्रकार हैं। (प्रज्ञापना२३/२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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