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An सचित्र उत्तराध्ययन सत्र
द्वाविंश अध्ययन
२७८
आओ, पहले हम भोगों को भोग लें। मनुष्य जन्म निश्चय ही बहुत दुर्लभ है। भोगों को भोगने के बाद, भुक्तभोगी बनकर हम जिन-मार्ग का आचरण करेंगे ॥३८॥
Come, let us enjoy pleasures first. Because to be born as a human being is definitely very difficult. After enjoyed the pleasures we shall enter the order of Jinas. (38)
दळूण रहनेमिं तं, भग्गज्जोयपराइयं ।
राईमई असम्भन्ता, अप्पाणं संवरे तहिं ॥३९॥ संयम के प्रति हीन-उत्साह और भोग-वासना से पराजित रथनेमि को देखकर राजीमती घबड़ाई नहीं (असम्भन्ता) उसने वस्त्रों से अपने शरीर को पुनः आवृत कर लिया ॥३९॥
Seeing Rathanemi without zeal for restrain and overwhelmed by passionate pleasures Räjimati did not perplex. She covered herself with her cloths. (39)
अह सा रायवरकन्ना, सुट्ठिया नियम-व्वए ।
जाई कुलं च सीलं च, रक्खमाणी तयं वए ॥४०॥ तत्पश्चात नियमों और व्रतों में सम्यक् प्रकार से अविचल (सुस्थित) उस श्रेष्ठ राजकन्या राजीमती ने जाति, कुल और शील की रक्षा करते हुए रथनेमि से कहा-॥४०॥
Then steady in her vows and rules that noble princess Rājimati, saving clan, caste, lineage and chastity, said to Rathanemi-(40)
जड़ सि रूवेण वेसमणो, ललिएण नलकूबरो ।
तहा वि ते न इच्छामि, जई सि सक्खं पुरन्दरो ॥४१॥ (राजीमती) यदि तू रूप में वैश्रमण के समान है, ललित कलाओं में नलकूबर जैसा है, यहाँ तक कि तू साक्षात् इन्द्र है तो भी मैं तेरी इच्छा नहीं करती ॥४१॥
May you he as beautiful as Vaiśramana Nalakūbara in fine arts, like king of gods || himself, still I have no desire for you. (41)
पक्खंदे जलियं जोइं, धूमकेउं दुरासयं ।
नेच्छन्ति वंतयं भोत्तुं, कुले जाया अगंधणे ॥४२॥ अगन्धन कुल में उत्पन्न हुए सर्प धूम की ध्वजा वाली जलती हुई दुष्प्रवेश अग्नि में प्रवेश कर जाते हैं, किन्तु वमन किये हुए अपने विष को पुनः पीना नहीं चाहते ॥४२॥
Serpents of agandhana class burn themselves in fire but do not drink again the vomitted poison. (42)
धिरत्थु ते ऽजसोकामी ! जो तं जीवियकारणा ।
वन्तं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे ॥४३॥ हे अपयश की इच्छा करने वाले ! तुझे धिक्कार है कि तू भोगी जीवन के लिए वमित किये हुए भोगों को पुनः भोगना चाहता है। इससे तो तेरा मर जाना ही श्रेयस्कर है ॥४३॥
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