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२७३ ] द्वाविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Riding on the best mast elephant (T-by the smell of this elephant other elephants are frightened) of Vāsudeva, Aristanemi looked beautiful as a jewel on the crest. (10)
अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारिओ ॥११
दशार चक्र (दशों दशाह) से घिरे हुए (परिवृत) अरिष्टनेमि ऊँचे छत्र और चामरों से शोभित थे ॥११॥ Aristanemi was adorned with umbrella etc., and the ten-adorables were surrounding him. (11) चउरंगिणीए सेनाए, रइयाए जहक्कमं । तुरियाण सन्निनाएण, दिव्वेण गगणं फुसे ॥१२॥
यथाक्रम से चतुरंगिणी सेना सजाई गई थी तथा वाद्यों के दिव्य नाद - घोष से आकाश गूँज रहा था ॥ १२ ॥ Fourfold army was adorned with weapons and sky was resounding by the sounds of divine musical instruments. (12)
एयारिसीए इड्डीए, जुईए उत्तिमाए य । नियगाओ भवणाओ, निज्जाओ वण्हिपुंगवो ॥१३॥
इस प्रकार की उच्चकोटि की ऋद्धि ( ठाठ-बाट) और द्युति ( चमक-दमक - शान-शौकत ) वृष्णिपुंगव (अरिष्टनेमि - इनका कुल वृष्णि था ) अपने भवन से निकले ॥१३॥
Thus, with such a pomp and show and splendour best of Vrsnis, Aristanemi started from his palace. (13)
अह सो तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धे सुदुक्खिए ॥१४॥
वहाँ से निकलने के उपरान्त उन्होंने (अरिष्टनेमि ने) बाड़ों और पिंजड़ों में बन्द किये गये भयग्रस्त और अति दुःखी प्राणियों (पशु-पक्षियों) को देखा ॥१४॥
In the way he saw birds and beasts in cages and enclosures, overcome by fear and misery. (14)
साथ
जीवियन्तं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्वए ।
पासेत्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी ॥१५॥
वे प्राणी जीवन की चरम स्थिति-मृत्यु के निकट थे, मांस के लिए ( मांसभक्षियों द्वारा ) भक्षण किये जाने वाले थे। उन्हें इस स्थिति में देखकर महा अरिष्टनेमि ने अपने सारथी ( महावत ) से कहा - ॥१५॥
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Those beings were near to death, to be killed for the food of meat-eaters. Seeing those beings in this state wise Ariṣṭanemi said to his charioteer (elephant driver)-(15)
कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धा य अच्छहिं ? ॥१६ ॥
ये सभी सुख के इच्छुक प्राणी बाड़ों और पिंजड़ों में किस कारण रोके गये हैं ? ॥ १६ ॥
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