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________________ २६७] द्वाविंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र बाईसवाँ अध्ययन : रथनेमीय पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन में यादवकुमार रथनेमि के वर्णन की प्रमुखता के कारण इसका नाम रथनेमीय रखा गया है। रथनेमि से संबंधित घटना इस प्रकार हैप्राचीन समय में ब्रजमण्डल के सोरियपुर (वर्तमान सौरीपुर-आगरा नगर के निकट) नगर में यदुवंशी राजा समुद्रविजय राज्य करते थे। ये दस भाई थे, जिनमें सबसे बड़े समुद्रविजय और सबसे छोटे वसुदेव थे। परम पराक्रमी होने के कारण दसों भाई दशार्ह कहलाते थे। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार उस समय सोरियपुर में द्वैध राज्य (दो राजाओं) की परम्परा थी। अन्धक और वृष्णि नामक दो शासक दल थे। समुद्रविजय अन्धकों के नेता थे और वसुदेव वृष्णियों के। इसलिए दोनों ही राजा कहलाते थे। समुद्रविजय की पटरानी शिवादेवी थी। उसके चार पुत्र थे-अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और दृढ़नेमि। वसुदेव की दो रानियाँ थीं-रोहिणी और देवकी। रोहिणी के पुत्र बलराम थे और देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने मथुरा के राजा और प्रतिवासुदेव जरासन्ध के दामाद कंस का वध किया था। अपने दामाद की मृत्यु के कारण जरासन्ध बौखला उठा। उसने यादवों के मूलोच्छेद का निर्णय कर लिया। उसके आक्रमण के भय के कारण समुद्रविजय आदि सभी यादव ब्रजमण्डल को छोड़कर पश्चिमी तट पर पहुँचे। द्वारका नगरी बसाई और विशाल साम्राज्य की स्थापना की। समुद्रविजय के ज्येष्ठ पुत्र अरिष्टनेमि परम पराक्रमी, अतुल बली, अतिशय शोभा संपन्न, अति सुन्दर थे, किन्तु सांसारिक विषय-भोगों की ओर इनकी बिल्कुल भी रुचि न थी। लेकिन समुद्रविजय और उनकी रानी शिवादेवी अपने पुत्र को विवाहित देखना चाहते थे। विवाह के लिए श्रीकृष्ण के अत्यधिक आग्रह पर अरिष्टनेमि मौन रह गये। 'मौनं सम्मति लक्षणं' के अनुसार श्रीकृष्ण ने उनके लिए भोजकुल की अत्यन्त सुन्दर कन्या राजीमती की खोज की और विशाल वारात सजाकर चल दिये। विवाह स्थल से कुछ पहले दूल्हा बने, गजारूढ़ अरिष्टनेमि ने पशु-पक्षियों को एक बाड़े में बन्द देखा और उनका आर्तनाद सुना तो अपने सारथी से इसका कारण पूछा। सारथी ने बताया-आपकी बारात में आये हुए अनेक व्यक्ति मांसभोजी हैं। उनके भोजन के लिए बाड़े व पिंजरे में बन्द पशु-पक्षियों की हत्या की जायेगी। अपनी मृत्यु से भयभीत ये पशु-पक्षी आर्तनाद कर रहे हैं। ‘मेरे विवाह के लिए हजारों मूक पशु-पक्षियों का वध किया जायेगा' इस विचार से ही अरिष्टनेमि का हृदय करुणा से द्रवित हो गया। उन्होंने पशुओं को तुरंत मुक्त करवाया और हाथी को वापस अपने निवास की ओर मोड़ने का आदेश दिया। इस अप्रत्याशित घटना से राजीमती शोक-विह्वल होकर मूर्छित हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jaineliblarylprg
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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