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on सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विंशति अध्ययन [२५२
सइं च जइ मुच्चेज्जा, वेयणा विउला इओ।।
खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वए अणगारियं ॥३२॥ यदि एक बार मैं इस घोर वेदना से मुक्त हो जाऊँ तो क्षमावान, दमितेन्द्रिय, आरम्भत्यागी अनगार बन जाऊँगा ॥३२॥
If I once get rid of this acute rigorous pain, then I will become a forgiving, sensesubdued, houseless monk (32)
एवं च चिन्तइत्ताणं, पसुत्तो मि नराहिवा ।
परियट्टन्तीए राईए, वेयणा मे खयं गया ॥३३॥ ___ हे नरेश ! इस प्रकार का चिन्तन (दृढ़ संकल्प) करके मैं सो गया और बीतती हुई रात्रि के साथ मेरी वेदना भी समाप्त हो गई ॥३३॥
Oking ! with such firm resolve, I fell asleep and with the passing night my pains had also vanished. (33)
तओ कल्ले पभायम्मि, आपुच्छित्ताण बन्धवे ।
खन्तो, दन्तो, निरारम्भो, पव्वइओ ऽणगारियं ॥३४॥ तब सूर्योदय के साथ ही नीरोग होकर मैंने बन्धु-बान्धवों से पूछा-अनुमति ली और क्षमाशील, दमितेन्द्रिय, निरारम्भी अनगार बन गया ॥३४॥
Then as the sun arose I was totally free from disease, I took permission from my family members, brethren etc., and became a forgiving, sense-subdued, possessionless and quithome sage. (34)
ततो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य ।
सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ॥३५॥ तदनन्तर मैं अपना और दूसरों का, त्रस और स्थावर सभी प्राणियों का नाथ बन गया ॥३५॥
After that I became the protector of my ownself (soul) all others-the movable and immovable living beings. (35)
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली ।
अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं ॥३६॥ __मेरी अपनी आत्मा ही वैतरणी नदी है, आत्मा ही कूट शाल्मली वृक्ष है, कामधेनु है और नन्दन वन है ॥३६॥
My own soul is Vaitarani river, Kuta Salmali tree (hellish river and tree) Kamadhenu (wish fulfilling cow) and Nandanavana (most pleasant place). (36)
अप्पा कत्ता विकत्ता य, टुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुष्पट्ठिय-सुपट्टिओ ॥३७॥
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