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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विंशति अध्ययन [२४६
विंसइमं अज्झयणं : महानियण्ठिज्जं विंशति अध्ययन : महानिर्ग्रन्थीय
सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ ।
अत्थधम्मगई तच्चं, अणुसटिंछ सुणेह मे ॥१॥ सिद्धों तथा संयतों (आचार्य, उपाध्याय, साधु) को भाव सहित नमस्कार करके मैं अर्थ-(मोक्ष) और धर्म (रत्नत्रयरूप धर्म) का ज्ञान कराने वाली तथ्यपूर्ण शिक्षा का कथन करता हूँ, उसे मुझसे सुनो ॥१॥
Devotionally bowing to Emancipateds (Jinas) and restraineds (preceptors, preachers, and religious teachers) I express the instruction, which is capable to obtain the knowledge of liberation and religion (the religion of right knowledge-faith-conduct-रलत्रय धर्म); listen that from me. (1)
पभूयरयणो राया, सेणिओ मगहाहिवो ।
विहारजत्तं निज्जाओ, मण्डिकुच्छिसि चेइए ॥२॥ प्रचुर रत्नों का स्वामी, मगध देश का अधिपति राजा श्रेणिक मण्डिकुक्षि उद्यान में उद्यान-क्रीड़ा के लिए नगर से निकला ॥२॥
The owner of abundant jewels, monarch of Magadha kingdom, King Śreņika went out of city for amusement in Mandikuksi garden. (2)
नाणादुमलयाइण्णं, नाणापक्खिनिसेवियं ।
नाणाकुसुमसंछन्नं, उज्जाणं नन्दणोवमं ॥३॥ वह उद्यान नंदन वन के समान अनेक प्रकार के वृक्षों, लताओं से आच्छादित, विविध प्रकार के पक्षियों से आकीर्ण और विभिन्न प्रकार के पुष्पों से भरा हुआ था ॥३॥
That garden (Mandikuksi) was adorned with several kinds of trees and tendrils, birds and full of flowers, like Nandanavana (the garden of gods and king of gods) (3)
तत्थ सो पासई साहुं, संजयं सुसमाहियं ।
निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ॥४॥ उस उद्यान में राजा श्रेणिक ने एक वृक्ष के मूल में एक सुख-भोग के आयुष्य वाले, सुकुमार, सम्यक् समाधि युक्त संयत को ध्यानस्थ बैठे देखा ॥४॥
In that garden king Śreņika saw a sage under a tree, who was young, tender, and of age of enjoying pleasures; but he was deep in contemplation (4)
तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अच्चन्तपरमो आसी, अउलो रूवविम्हओ ॥५॥
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