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एकोनविंश अध्ययन [२३६
त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एगभूओ अरण्णे वा, जहा उ चरई मिगो ।
एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ॥७॥ जैसे वन में मृग अकेला ही विचरण करता है उसी प्रकार मैं तप-संयम से भावित होकर अकेला ही विचरण करूँगा ॥७॥
As the deer (or wild animal) roams about itself in the forest, so I will roam alone practising restrain and penances. (78)
जया मिगस्स आयंको, महारण्णम्मि जायई ।
अच्छन्तं रुक्खमूलम्मि, को णं ताहे तिगिच्छई ? ॥७९॥ जब महा भयंकर गहन वन में मृग के शरीर में आतंक-शीघ्रघाती रोग उत्पन्न हो जाता है, तब वृक्ष के मूल में बैठे हुए उस मृग की चिकित्सा कौन कराता है ? ॥७९॥
When in the dreadful vast forest a prolonged disease is caused in the body of a deer, then he lays down at the root of a tree, who gives him treatment ? (79)
को वा से ओसधं देई ?, को वा से पुच्छइ सुहं ?।
को से भत्तं च पाणं च, आहरित्तु पणामए ? ॥५०॥ कौन उसे औषध देता है? कौन उसके सुख-स्वास्थ्य के विषय में पूछता है और कौन उसे आहार आदि लाकर देता है? ||८०॥
Who gives him medicine and who inquires for his health and who feeds him with food and water ? (80)
जया य से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं ।
भत्तपाणस्स अट्ठाए, वल्लराणि सराणि य ॥८१॥ जब वह स्वयं ही सुखी और स्वस्थ हो जाता है तब वह स्वयं गोचर भूमि में जाता है और खाने-पीने के लिए लता निकुंजों, झाड़ियों तथा सरोवरों को खोजता है ॥८१॥
When he himself becomes happy and healthy (by nature cure) then he goes himself in pasture land and to lakes and searches himself the food and water. (81)
खाइत्ता पाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि वा ।
मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारियं ॥१२॥ लता कुंजों और सरोवरों से अपनी भूख-प्यास को मिटाकर स्वतंत्र विचरण करता हुआ वह मृगों की निवास भूमि में चला जाता है ।।८२॥
Pacifying his hunger and thirst by eating grass and drinking the lake-water. He goes freely roaming to his own herd, the residence of his troop. (82)
एवं समुट्ठिओ भिक्खू, एवमेव अणेगओ । मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ढं पक्कमई दिसं ॥३॥
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