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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
उसने वहाँ राजपथ पर गमन करते हुए तप-नियम-संयम के धारक, शील संपन्न, गुणों के आकर संयमी श्रमण को देखा ॥ ५॥
एकोनविंश अध्ययन [ २२२
He saw there moving on royal road a restrained sage, who was practiser of penances and monk-rules, full of virtues and very mine of best qualities. (5)
तं देहई मियापुत्ते, दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरि रूवं, दिट्ठपुव्वं मए पुरा || ६ ||
श्रमण को मृगापुत्र अपलक दृष्टि से देखता हुआ विचार करता है- मैं मानता हूँ कि ऐसा रूप इससे पूर्व भी मैंने कहीं देखा है ॥६॥
Mrgaputra looks at the sage with unwinking eyes and considers that I suppose that I have seen such form anywhere before. (6)
साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसामि सोहणे ।
मोहं गयस्स सन्तस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥
साधु के दर्शन तथा उसके उपरान्त शुद्ध अध्यवसायों से ऊहापोह करने पर उसे जाति-स्मरणज्ञान समुत्पन्न हुआ ||७||
Looking at the sage and then pondering with pure mind he recollected his former births. (7)
देवलोग चुओ संतो सन्निनाणे समुप्पण्णे, जाई सरइ पुराणयं ॥ ८ ॥
माणसं भवमागओ ।
संज्ञिज्ञान - जातिस्मरणज्ञान होने पर उसे अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो आया कि मैं देवलोक से च्यवित होकर इस मनुष्य भव में आया हूँ ॥८॥
By the memory of former births he became aware that completing god-duration from god-abode I took birth in this human existence. (8)
जाइसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते
महिड्दिए । सरई पोराणियं जाई, सामण्णं च पुराकयं ॥ ९॥
जातिस्मरणज्ञान समुत्पन्न होते ही महान राज्य ऋद्धि वाले मृगापुत्र को पूर्वजन्म में आचरित श्रमण धर्म का ज्ञान हो गया || ९ ||
By the memory of his former births, most fortunate and prosperous Mrgaputra became well aware of practised sage-conduct in former life. (9)
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विसएहि अरज्जन्तो, रज्जन्तो संजमम्मि य ।
अम्मापयरं उवागम्म, इमं वयणमब्बवी ॥१०॥
विषयों से विरक्त और संयम में अनुरक्त मृगापुत्र माता-पिता के समीप आया और उनसे इस प्रकार कहने लगा- 190 ॥
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