________________
२१५] अष्टादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एए
नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं, सामण्णे पज्जुवट्ठिया ॥४७॥
ये सभी राजाओं में उत्तम, वृषभ के समान श्रेष्ठ थे। इन चारों राजाओं - प्रत्येकबुद्धों ने अपने-अपने पुत्रों को राज्यभार दिया और प्रव्रजित होकर मुनिधर्म में सर्व रूपेण स्थिर हो गये ||४७॥
These all the four were excellent among all the kings and best like an ox. All these four were enlightened visualising ordinary and most simple events. All these four enthroned their sons and being consecrated fixed in monkhood wholely. (47)
सोवीररायवसभो, चेच्चा रज्जं मुणी चरे । उद्दायणो पव्वइओ, पत्तो इमणुत्तरं ॥ ४८ ॥
राजाओं में वृषभ के समान श्रेष्ठ सौवीर नरेश उदायन ने राज्य का त्याग करके दीक्षा ग्रहण की, मुनिधर्म का आचरण किया और मुक्ति प्राप्त की || ४ ||
The best as an ox among all the kings, the ruler of Sauvira region king Udayana, renouncing his kingdom, accepted consecration, practised monk-order and attained liberation. (48)
तहेव
कासीराया, सेओ-सच्चपरक्कमे ।
कामभोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्ममहावणं ॥४९॥
इसी प्रकार श्रेय और सत्य में पराक्रमी काशी नरेश ने काम भोगों का त्याग कर कर्म रूपी महावन को भस्म कर दिया ॥ ४९ ॥
In the same way king of Käsi, exerted in merits and truth, renouncing all the pleasures, consumed great forest of karmas i.e., totally destructed all the karmas. (49)
तहेव विजओ राया, अणट्ठाकित्ति पव्वए । रज्जं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसो ॥५०॥
अमर कीर्तिधारी, महायशस्वी, गुण समृद्ध विजय राजा राज्य को तृणवत् त्यागकर प्रव्रजित हो
गया || ५० ॥
Greatly glorified and opulent with virtues king Vijaya, abandoning his kingdom like a piece of straw, accepted consecration. (50)
Jain Education International
तहेवुग्गं तवं किच्चा, अव्वक्खित्तेण चेयसा ।
महाबलो रायरिसी, अद्दाय सिरसा सिरं ॥ ५१ ॥
इसी तरह अव्याकुल मन से उग्र तपश्चर्या करके राजर्षि महाबल ने सिर देकर - अहंकार का त्याग कर र- शीर्ष स्थान मोक्ष प्राप्त किया ॥ ५१ ॥
Like this, practising severe penances with an undistracted mind, king Mahabala attained salvation, the highest place by giving up his head - meaning giving up his pride. (51)
For Private & Personal Use Only
www.ainelibrary.org