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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र अष्टादश अध्ययन [ २०४ अठारहवाँ अध्ययन : संजयीय पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम संजयीय इस अध्ययन के प्रमुख पात्र राजा संजय अथवा संयत के नाम पर आधारित है। पिछले पाप श्रमणीय अध्ययन में निर्दोष श्रमणाचार पालन की प्रेरणा दी गई थी और इस अध्ययन में एक मृगया-प्रेमी हिंसक राजा संजय के हृदय परिवर्तन तथा शुद्ध श्रमणाचार पालन की घटना दी गई है। घटना क्रम कांपिल्यपुर नगर का मृगया-प्रेमी राजा संजय (संयत ) अपनी चतुरंगिणी सेना लेकर शिकार के लिये वन में गया। सैनिकों ने मृगों को केशर उद्यान की ओर हाँका और राजा उन्हें बाणों से बींधने लगा। घायल हरिण इधर-उधर भाग रहे थे। उनमें से कुछ हरिण उद्यान में जाकर गिरे और मर गये। वहीं लता मण्डप में गर्दभालि मुनि ध्यानस्थ थे। मृगों का पीछा करता हुआ राजा उद्यान में पहुँचा तो अनगार गर्दभालि को देखकर समझा कि ये हरिण इन्हीं मुनि के हैं। वह बहुत भयभीत हुआ। घोड़े से उतरा और करबद्ध होकर अपने अपराध ( हरिणों को मारने के अपराध) की क्षमा माँगने लगा। अनगार गर्दभालि ने ध्यान पूरा करके कहा- हे राजन् ! तुम्हें मेरी ओर से अभय है। तुम भी दूसरों के लिए अभयदाता बनो। यदि इस घटना को प्रस्तुत अध्ययन की भूमिका मानें तो अध्ययन का प्रारम्भ 'अभयदाया भवाहि य' इन शब्दों से होता है। प्रस्तुत अध्ययन में श्रामण्य, दार्शनिक सिद्धान्तों और इतिहास का बड़ा ही सुन्दर समन्वय हुआ है। अनगार गर्दभालि के उद्बोधनपरक उपदेश और संसारी रिश्ते-नातेदारों की स्वार्थपरता का वास्तविक स्वरूप जानकर राजा संजय दीक्षित हो जाता है। गुरुकृपा से ज्ञान- चारित्र में निष्णात बनकर एकल विहारी हो जाता है। Jain Education International एकल विहारी राजर्षि संजय का शुभ मिलन एक क्षत्रिय राजर्षि से होता है। परस्पर वार्तालाप के दौरान विभिन्न दर्शनों, सिद्धान्तों, एकान्तवाद की चर्चा में क्षत्रिय राजर्षि भगवान महावीर द्वारा कथित अनेकान्तवाद को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं । जैन दर्शन का यह स्थापित सत्य है कि अनेकान्तवाद के प्रथम प्रस्थापक भगवान ऋषभदेव थे। भगवान महावीर ने तो इसे पुनर्प्रचारित किया था। अनेकान्तवाद की इस प्रतिष्ठापना को आधार बनाकर भरत, सगर, मघवा आदि १९ ऐसे महानात्माओं के दृष्टान्त सुनाते हैं जिन्होंने अनेकान्तवाद को भली-भाँति जाना और श्रमणत्व का पालनकर मुक्त हुए। इन महापुरुषों के दृष्टान्त क्षत्रिय राजर्षि ने राजर्षि संजय को जिनशासन में और भी दृढ़ बनाने के लिए दिये। द्रुमपत्रक अध्ययन में जिस प्रकार भगवान महावीर ने गौतम गणधर को क्षणमात्र भी प्रमाद न करने का उद्बोधन दिया था किन्तु था वह सबके लिए। इसी प्रकार क्षत्रिय राजर्षि का उद्बोधन, दार्शनिक चर्चा, अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठापना तथा महापुरुषों के दृष्टान्त सभी साधकों को जिनशासन में दृढ़ करने के प्रेरक सूत्र हैं। प्रस्तुत अध्ययन में ५४ गाथाएँ हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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