________________
ain सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सप्तदश अध्ययन [१९८
सतरसमं अज्झयणं : पावसमणिज्ज। सप्तदश अध्ययन : पाप-श्रमणीय
जे के इमे पव्वइए नियण्ठे, धम्मं सुणित्ता विणओववन्ने ।
सुदुल्लह लहिउं बोहिलाभं, विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥१॥ जो कोई श्रुत-चारित्ररूप धर्म को सुनकर, अत्यधिक दुर्लभ बोधिलाभ प्राप्त करके पहले तो विनय से युक्त होकर निर्ग्रन्थ धर्म में प्रव्रजित हो जाता है और बाद में सुखशील बनकर स्वच्छन्द विचरण करता है ॥१॥
One who hearing the religion of knowledge and conduct, attaining enlightenment which is very difficult to obtain, and being modest accepts the knotless religious order-consecration and afterwards becoming comfort-wisher moves (acts) according to his own wish. (1)
ion of knowledge and cost accepts the kneecording to his
सेज्जा दढा पाउरणं मे अत्थि, उप्पज्जई भोत्तुं तहेव पाउं ।
जाणामि जं वट्टइ आउसु ! त्ति, किं नाम काहामि सुएण भन्ते ॥२॥ आचार्य अथवा गुरु-जन जब उसको श्रुत के अध्ययन की प्रेरणा देते हैं तब वह कहता है-हे आयुष्मन् ! निवास के लिए सुन्दर उपाश्रय, शरीर-रक्षा के लिए वस्त्र मेरे पास हैं, खाने-पीने को भी यथेच्छ भोजन प्राप्त हो जाता है और जो हो रहा है उसे मैं जानता हूँ। तब शास्त्रों का अध्ययन करके मैं क्या करूँगा ? ॥२॥
When preceptors and elder monks inspires him to study the holy scriptures, then he says-I have good lodging for inheritance, and cloths for protecting my body, I get food and drink as I wish and I know-what is happening; then what is the use of studying scriptures for me. (2)
जे के इमे पव्वइए, निद्दासीले पगामसो ।
भोच्चा पेच्या सुहं सुवइ, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥३॥ जो कोई प्रव्रज्या ग्रहण करके अत्यधिक निद्रा लेता है, इच्छानुकूल खा-पीकर (दिन में भी) सो जाता है, वह पाप-श्रमण कहा जाता है |॥३॥ .
He, who being consecrated, takes much sleep, drinking and eating according to his own wish sleeps even in day time, he is called a sinful sage. (3)
आयरियउवज्झाएहिं, सुयं विणयं च गाहिए।
ते चेव खिसई बाले, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥४॥ ___ जिन आचार्यों और उपाध्यायों से श्रुत-ज्ञान और विनय-आचार की शिक्षा प्राप्त की है, उन्हीं गुरुजनों की जो निन्दा करता है, वह पाप-श्रमण कहा जाता है ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org